नई दिल्ली। इसी सप्ताह हिंदूओं का मुख्य दीपावली मनाया जाएगा। इस बार दिवाली सोमवार 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। देशभर में इस त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। ज्यादातर स्थानों पर दिये जलाकर ही दिवाली मनाई जाती है। लेकिन उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां दिवाली का उत्सव तीन बार मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं क्या है वो परंपरा… उत्तराखंड के टिहरी जिले में कार्तिक मास की दीपावली का पर्व मनाया जाता है। जो इस बार 24 अक्टूबर को पड़ रही है। कार्तिक दीपावली के ठीक एक महीने बाद कुछ स्थानों पर मंगशीर की दीपावली मनाई जाती है। इसे बड़ी बग्वाल के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार पर स्थानीय फसलों के व्यंजन बनाने का नियम है। मंगशीर की दिवाली टिहरी के भिलंगना प्रखंड के बूढ़ाकेदार, जौनपुर और कीर्तिनगर के कई गांवों में भी मनाई जाती है। बूढ़ाकेदार के लोग मंगशीर दीपावली के दिन अपने गुरू ‘कैलापीर देवता’ की पूजा करते हैं। बूढ़ाकेदार में मंगशीर दीपावली के पीछे एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, एक बार कैलापीर देवता हिमांचल से भ्रमण के लिए निकले और उन्हें बूढ़ाकेदार काफी पसंद आ गया और वो वहीं बस गए। इससे ग्रामीणों ने खुशी में लकड़ी जलाकर रोशनी करते हुए कैलापीर देवता का स्वागत किया। तभी से मंगशीर दिवाली मनाने की प्रथा चल पड़ी। इस त्योहार पर ग्रामीण खुशहाली और अच्छी फसल पाने के लिए अपने देवता के प्रतीक चिन्ह के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं।
टिहरी जिले के कीर्तिनगर के मलेथा व जौनपुर के कुछ गांवों में भी मंगशीर दिवाली मनाई जाती है, लेकिन उसे मनाने के पीछे अन्य कारण बताया जाता है। कहा जाता है कि कार्तिक माह के दौरान यहां के एक वीर ‘भड़ माधो सिंह भंडारी’ गोरखाओं के साथ युद्ध करने के लिए तिब्बत बार्डर पर गए थे और इसके ठीक एक माह बाद मंगशीर के दिन वापस लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में यहां के लोग आज भी स्थानीय फसलों का प्रयोग करते हुए कई तरह के पकवान तैयार करते हैं। इसके अलावा, जिले के कई क्षेत्रों में कार्तिक दीपावली के 11 दिन बाद ‘इगाश दिवाली’ का त्योहार मनाया जाता है।
इगाश दिवाली के पीछे प्रचलित कथा के अनुसार, यहां का एक व्यक्ति प्रसिद्ध व्यक्ति एक बार जंगल में लकड़ी लेने गया और वहां रास्ता भटक गया। 11 दिनों के बाद जब वो वापस लौटा तो लोगों ने खुशी में दीपावली मनाई। तब से इस पर्व को मनाने की शुरूआत हो गई।