
नई दिल्ली। इन दिनों हिंदुस्तान में मंदिर बनाम मस्जिद का मुद्दा गरमाया हुआ है। हर तरफ इसकी ही चर्चा हो रही है कि क्या मंदिर बनना चाहिए या मस्जिद? इंसान चाहे आम हो या खास हर कोई इस मुद्दे पर बात करते हुए और अपनी राय देने से कोई गुरेज नहीं कर रहा है। सबसे पहले काशी की विवादित ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा उठा। इस मस्जिद पर पहले हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि मस्जिद में हिंदू देवी-देवताओं के साक्ष्य मौजूद है। लेकिन मुस्लिम पक्ष इन सब बातों से इनकार करता रहा। जब कोर्ट में मामला पहुंचा तो कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को झटका लताते हुए ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए थे। अब यह मामला अपने अंतिम चरण तक पहुंच गया है। गुरुवार को कोर्ट ने कहा है कि सोमवार को इसकी सुनवाई होगी। इसके बाद मथुरा की ईदगाह मस्जिद पर भी कई लोगों हिंदू साक्ष्यों के होने का दावा किया। ज्ञानवापी की तरह ईदगाह मस्जिद का मुद्दा भी खूब उछला और इसकी भी हर जगह चर्चा होने लगी। इन सब के बाद अब एक ऐसा ही मुद्दा राजस्थान के अजमेर से भी आ रहा है। बताया जा रहा है कि राजस्थान के अजमेर में स्थित मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए हिंदू संगठनों के द्वारा दावा किया है कि यह दरगाह असल में एक मंदिर है।
पीएम से की जांच की मांग
अजमेर की मोईनुद्दीन चिश्ती पर हिंदू संगठनों ने दावा करते हुए कहा है कि इसमें एक शिव मंदिर है और मस्जिद की दिवारों पर हिंदू धर्म के प्रतीक मौजूद हैं। महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज्यवर्धन सिंह परामर ने इस बारे में कहा है कि अजमेर स्थित गरीब नवाज कहलाने वाले मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पहले हिन्दू मंदिर था। उन्होंने पत्र में कहा कि सर्वेक्षण कराने के बाद इसके हिन्दू मंदिर होने के प्रमाणित साक्ष्य मिल जाएँगे। इस मसले पर पहले ही हिंदू संगठनों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है। इस पत्र के जरिए हिंदू संगठनों ने मांग की है कि मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगार पर पुरातत्व विभाग से सर्वे कराया जाए।