newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Andhra Pradesh: आंध्र प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए वक्फ बोर्ड को भंग किया, जीओ-47 को भी किया गया रद्द

Andhra Pradesh: राज्य के न्याय एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद फारूक ने बताया कि पिछली सरकार द्वारा जारी जीओ-47 में वक्फ बोर्ड के गठन को लेकर कई विवाद खड़े हुए थे। 21 अक्टूबर 2023 को जारी जीओ के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था, जिसमें रूहुल्लाह (एमएलसी), हाफ़िज़ खान (एमएलए), शेख खाज़ा सहित अन्य सदस्यों को नामांकित किया गया था।

नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए राज्य के वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया है। सरकार ने विवादित जीओ नंबर 47 को रद्द करते हुए नया जीओ-75 जारी किया है। यह फैसला राज्य उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप लिया गया है।

जीओ-47 को क्यों किया गया रद्द?

राज्य के न्याय एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद फारूक ने बताया कि पिछली सरकार द्वारा जारी जीओ-47 में वक्फ बोर्ड के गठन को लेकर कई विवाद खड़े हुए थे। 21 अक्टूबर 2023 को जारी जीओ के तहत वक्फ बोर्ड का गठन किया गया था, जिसमें रूहुल्लाह (एमएलसी), हाफ़िज़ खान (एमएलए), शेख खाज़ा सहित अन्य सदस्यों को नामांकित किया गया था।


हालांकि, कुछ लोगों ने इन नियुक्तियों की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए राज्य उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद, उच्च न्यायालय ने 1 नवंबर 2023 को अंतरिम आदेश जारी करते हुए वक्फ बोर्ड चेयरमैन की चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी। इस आदेश के कारण वक्फ बोर्ड में प्रशासनिक शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो गई।

गठबंधन सरकार का कदम

मंत्री मोहम्मद फारूक ने कहा कि गठबंधन सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए पिछली सरकार के विवादित जीओ-47 को रद्द कर दिया और जीओ-75 जारी किया है। उन्होंने यह भी बताया कि सीएम चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली सरकार वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, संरक्षण और कल्याण के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।


मंत्री फारूक ने यह विश्वास दिलाया कि अल्पसंख्यकों के हित में सरकार द्वारा भविष्य में और भी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा, “गठबंधन सरकार ही अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण और कल्याण को सुनिश्चित कर सकती है।”

गौरतलब है कि पिछली सरकार के दौरान जारी किए गए जीओ-47 को लेकर विवाद तब खड़ा हुआ था जब नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बोर्ड के कामकाज में रुकावट आ गई थी, जिसके चलते यह फैसला लिया गया।