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UP News: दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे अनमय को मिलेगा नया जीवन, 16 करोड़ का इंजेक्शन दिया जाएगा बिल्कुल फ्री

UP News: अनमय के माता-पिता 16 करोड़ का इंजेक्शन लगवाने में सक्षम नहीं हैं। ये इंजेक्शन केवल ‘नोवार्टिस’ नाम की विदेशी कंपनी बनाती है। अनमय को बचाने की मुहिम की शुरुआत सोशल मीडिया पर हुई थी। लोगों ने #SaveAnmay हैशटैग चलाकर उसके परिवार की सहायता करने की अपील की थी।

नई दिल्ली। स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) टाइप- वन नामक दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे अनमय की जान बचाने की मुहिम सफल हो गई है। अनमय उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर के सौरमऊ निवासी सुमित सिंह के पुत्र हैं। अनमय की उम्र मात्र नौ माह है, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) टाइप- वन नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित हैं। कंपनी द्वारा एक लकी ड्रा निकाला गया था, जिसमें अनमय का नाम आया है। अब कंपनी अनमय को 16 करोड़ का इंजेक्शन फ्री में उपलब्ध कराएगी। गौरतलब है कि अनमय को बचाने के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाएं और व्यापारिक संगठन आगे आए थे। इन्होंने अनमय को बचाने के लिए कई मुहिम चलाई थी। मिली जानकारी के अनुसार, अनमय के माता-पिता 16 करोड़ का इंजेक्शन लगवाने में सक्षम नहीं हैं। ये इंजेक्शन केवल ‘नोवार्टिस’ नाम की विदेशी कंपनी बनाती है। अनमय को बचाने की मुहिम की शुरुआत सोशल मीडिया पर हुई थी। लोगों ने #SaveAnmay हैशटैग चलाकर उसके परिवार की सहायता करने की अपील की थी।

यहां तक सोनू सूद ने भी अनमय की जान बचाने के लिए सोशल मीडिया पर सहायता की अपील की थी। सोशल मीडिया पर चले कैंपेन से अब तक अनमय के खाते में दो करोड़ अस्सी लाख रुपये इकट्ठे हो चुके हैं। इसके अलावा, जिला प्रशासन की ओर से भी मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से सहायता के लिए शासन को पत्र लिखा गया था। इसी बीच दिल्ली स्थित गंगाराम हॉस्पिटल से अनवय के पिता के पास फोन किया गया कि अनवय का नाम लक्की ड्रॉ में निकला है। बता दें, कंपनी नोवार्टिस लॉटरी के जरिए विश्व के 100 बच्चों को ये इंजेक्शन फ्री में देती है। ये लकी ड्रा हर पंद्रह दिन में निकाला जाता है। मिली जानकारी के अनुसार, सोमवार यानी 19 सितंबर को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में अनवय की जांच की जाएगी।

क्या होता है स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) टाइप- वन?

इंसान के शरीर में मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को जीवित रखने के लिए प्रोटीन बनाने का एक जीन होता है। स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉपी की बीमारी से जूझ रहे बच्चों में ये जीन नहीं होता है, जिसकी वजह से उनके शरीर में प्रोटीन निर्मित नहीं हो पाता है। गर्भावस्था में इस बीमारी का पता नहीं लग पाता है। हालांकि, समय के साथ इसके लक्षण नजर आने लगते हैं।