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Pakistani Family Held In Bengaluru: ‘शर्मा’ बनकर बेंगलुरु के गांव में बसा था पाकिस्तानी परिवार!, पुलिस ने गिरफ्तार कर हिंदू नाम से बने आधार और पासपोर्ट किए बरामद

Pakistani Family Held In Bengaluru: राशिद, आयशा, हनीफ मोहम्मद और रुबीना जहां रह रहे थे, वहां रविवार को पुलिस ने छापा मारा। उस वक्त ये लोग सामान की पैकिंग कर रहे थे। माना जा रहा है कि पाकिस्तान से आकर हिंदू नाम से छिपे ये सभी लोग फरार होना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उनका इरादा नाकाम कर दिया।

बेंगलुरु। शंकर शर्मा, आशा रानी, रामबाबू शर्मा और रानी शर्मा। आप कहेंगे कि ये सभी हिंदू हैं। जरा ठहरिए। ये हिंदू नहीं, पाकिस्तान के हैं और मुस्लिम भी। इनके असली नाम राशिद अली सिद्दीकी, आयशा, हनीफ मोहम्मद और रुबीना हैं। ये सभी कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के पास राजापुरा गांव में पहचान छिपाकर रह रहे थे। पुलिस ने इन सभी की असली पहचान उजागर करते हुए गिरफ्तार किया है।

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अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक राशिद, आयशा, हनीफ मोहम्मद और रुबीना जहां रह रहे थे, वहां रविवार को पुलिस ने छापा मारा। उस वक्त ये लोग सामान की पैकिंग कर रहे थे। माना जा रहा है कि पाकिस्तान से आकर हिंदू नाम से छिपे ये सभी लोग फरार होना चाहते थे, लेकिन उनका ये इरादा ध्वस्त हो गया। इन सभी के पास आधार और पासपोर्ट वगैरा मिले। जिनमें हिंदू नाम शंकर शर्मा, आशा रानी, रामबाबू शर्मा और रानी शर्मा दर्ज हैं। पुलिस अब ये जांच कर रही है कि सभी पाकिस्तानी लोगों ने किस तरह ये दस्तावेज बदले हुए नाम से बनवाए। इनके घर की दीवार पर पुलिस को मेहदी फाउंडेशन इंटरनेशनल जश्न-ए-यूनुस लिखा मिला। साथ ही पुलिस ने जब छानबीन की, तो घर से मौलवियों की तस्वीरें भी मिलीं।

पूछताछ में इन लोगों ने बताया है कि पाकिस्तान से हैं। पाकिस्तान के लियाकताबाद और लाहौर में इनका असली ठिकाना है। राशिद अली सिद्दीकी ने पुलिस को बताया कि पहले ये सभी बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रहे। वहीं, आयशा से उसका निकाह भी हुआ। साल 2014 में जब इस परिवार को पाकिस्तान में निशाना बनाया जाने लगा, तब वे बांग्लादेश और फिर भारत आए। ये पाकिस्तानी परिवार दिल्ली में भी रहा। पश्चिम बंगाल के मालदा के रास्ते ये सभी भारत पहुंचे थे। बेंगलुरु के ही निवासी अल्ताफ और वाशिम से राशिद की मुलाकात नेपाल में हुई। जिसके बाद सभी बेंगलुरु पहुंचकर गांव में रहने लगे। अल्ताफ इनके घर का किराया देता था। वहीं, मेहदी फाउंडेशन बाकी खर्चे उठाता था। राशिद खाने-पीने की चीजें और गैराज में तेल की सप्लाई का काम भी करता था।