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Fanishwar Nath Renu B’Day: हिंदी साहित्य में आंचलिक विधा के जन्मदाता फणीश्वरनाथ रेणु की जयंती, जानिए क्यों कहा था पद्मश्री को पापश्री

Fanishwar Nath Renu B’Day: रेणु जी की तुलना अंग्रेजी साहित्य के कहानीकार विलियम वर्ड्सवर्थ से की जाती है। रेणु ने अपनी रचनाओं में न केवल आम बोलचाल वाली भाषा का इस्तेमाल किया है बल्कि शब्द चित्रों को बखूबी खींचा है।

नई दिल्ली। हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा देने वाले लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की आज 101वीं जयंती है। हिंदी साहित्य में आंचलिक विधा के जन्मदाता फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 04 मार्च 1921 को बिहार के ‘अररिया’ के ‘औराही हिंगना’ गांव में हुआ था। उनकी स्मृति में साहित्य के पुजारी भारत समेत विश्व के कई भागों में उनसे संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। रेणु जी की तुलना अंग्रेजी साहित्य के कहानीकार ‘विलियम वर्ड्सवर्थ’ से की जाती है। रेणु ने अपनी रचनाओं में न केवल आम बोलचाल वाली भाषा का इस्तेमाल किया है, बल्कि शब्द चित्रों को बखूबी खींचा है। रेणु जी की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इसके बाद वो नेपाल के ‘विराटनगर’ चले गए और कोईराला परिवार में रहकर मैट्रिक की परीक्षा पास की। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संबंधित एक विद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। रेणु जी एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया था।

उन्होंने पचास के दशक में नेपाल में राणाशाही के खिलाफ जंग में अपनी भागीदारी निभाई थी। इसके अलावा उस दौरान देश में चल रहे की आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। रेणुजी को 21 अप्रैल 1970 को ‘पद्मश्री’ अवार्ड से सम्मानित किया गया था, लेकिन 04 नवम्बर को पटना में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा निहत्थे लोगों पर लाठियां बरसाए जाने के विरोध में उन्होंने ने केवल बिहार सरकार की ओर से मिलने वाली तीन सौ रूपये की पेंशन लौटा दी, बल्कि पद्मश्री अवार्ड को भी ‘पापश्री का अवार्ड’ कह वापस कर दिया था।

रेणु जी की कहानियों के पात्र और पृष्ठभूमि ग्रामीण शैली की होती थी। रेणुजी ने वैसे तो कई कहानियों की रचना की, लेकिन उन्हें सबसे अधिक प्रसिद्धि ‘मैला आंचल’ से मिली। इसके अलावा उन्होंने ‘परती परिकथा’, ‘भित्तिचित्र की मयूरी’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘ठुमरीन, ‘अग्निखोर’, ‘अच्छे आदमी’, ‘पलटू बाबू का रोड’, ‘जुलूस’, ‘दीर्घतपा’, ‘कितने चौराहे’, ‘नेपाली क्रांतिकथा’ आदि तमाम कहानियां और अपने संस्मरण को लिखकर हिन्दी साहित्य के खजाने की वृद्धि में सहयोग किया।

उनकी कई कहानियों पर बॉलीवुड ने फिल्में भी बनाई जिसमें से रेणु की रचना ‘मारे गये गुलफाम’ पर फिल्म ‘तीसरी कसम’ बनी थी, जो बॉक्सऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। इसके अलावा धर्मेन्द्र और पद्मा खन्ना के साथ रेणु की लेखनी पर आधारित फिल्म ‘डागडर बाबू’ का निर्माण शुरू हुआ लेकिन आधी फिल्म बनने के बाद ही किसी वजह से फिल्म पूरी नहीं हो पाई। 11 April 1977 को फणीश्वर नाथ रेणु इस दुनिया को अलविदा कह गए थे।