
नई दिल्ली। जिस मुस्लिम लीग को राहुल गांधी अमेरिका में जाकर सेक्युलर बता रहे हैं वो कितनी सेक्युलर है आज इसकी सच्चाई हम आपको बताने वाले हैं। IUML यानि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की खुद की ही वेबसाइट पर इसकी पोल पट्टी खुली पड़ी है, सेक्युलर होने का ढोंग करने वाली इस पार्टी की हाई पावर कमेटी में 6 सदस्य शामिल हैं, राहुल गांधी शायद पढ़कर नहीं आए हों, लेकिन कि इस कमेटी में 6 के 6 सदस्य मुस्लिम हैं। इसके अलावा जब इस वेबसाइट को और ढंग से आप देखेंगे तो आपको मिलेगा कि इसके स्टेट कमेटी में 3 सदस्य हैं, वो भी तीनों मुसलमान हैं।
राहुल गांधी को किस एंगल से ये पार्टी सेक्युलर नजर आती है
इसके अलावा इसमें 10 उपाध्यक्ष भी हैं, और आपको ये सुनकर हंसी आएंगी कि जिस पार्टी को सेक्युलर राहुल गांधी बता रहे हैं, उसमें 10 के 10 उपाध्यक्ष मुस्लिम हैं। इसके अलावा और हमने जब गहराई से इस सेक्युलर IUML की वेबसाइट को देखा तो पाया कि इसमें 11 सचिव हैं, जिसमें 10 मुसलमान हैं। ये है इस पार्टी की सच्चाई, राहुल गांधी को पता नहीं किस एंगल से ये पार्टी सेक्युलर नजर आती है। ऊपर से नीचे तक हर जगह मुसलमान-मुसलमान भर रखे हैं और ढोल पीट रहे हैं धर्मनिरपेक्षता का। बड़ा अजीब सा सेकुलरिज्म यहां तो नजर आता है क्योंकि ऐसे सेक्युलर दल आजतक नहीं देखे जिसमें एक लिस्ट बनाई जाए तो सभी एक ही धर्म के लोग भर दिए जाए। क्या लीग को कोई हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध कोई नजर नहीं आया जिनको ये कोई पद दे सकते ?
कब हुआ गठन ?
IUML का गठन 1948 में किया गया, एक तरफ दूसरा देश लेकर जिन्ना की मुस्लिम लीग अलग हो गई। तो दूसरी तरफ फिर मुसलमानों की नुमाइंदगी के लिए IUML उन्हीं लोगों ने बनाई जो जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ रहे थे। इस समय से लेकर अबतक इस पार्टी में 6 अध्यक्ष रहे और वो भी सभी मुस्लिम..1948 से 1972 तक मुस्लिम लीग के अध्यक्ष एम मुहम्मद इस्माइल रहे। इसके बाद 1972 से 1973 तक रहे बाफकी तंगल, 1973 से 1994 तक इब्राहिम सुलेमान सैत, 1994 से 2008 गुलाम महमूद बनातवाला रहे। इसके बाद एक और मुसलमान अध्यक्ष, 2008 से 2017 तक ई अहमद और 2017 से अबतक के एम कादिर मोहिदीन आखिर में ये भी मुसलमान.. तो देखा आपने कैसे मुस्लिम लीग पूरी तरह मुस्लिमों के लिए है मुस्लिमों के द्वारा बनी है और इसमें कुछ भी नॉन मुस्लिम नहीं है। लेकिन राहुल गांधी को फिर भी ये पार्टी सेक्युलर दिख रही है।
देशभर में कितने नुमाइंदे ?
चलिए आपको थोड़ा और जानकारी देते हैं। मुस्लिम लीग के देशभर में 4 सांसद हैं और चारों मुसलमान हैं, इतना सबकुछ जानने के बाद अब इस बात में हमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इसके 15 विधायक है और सभी मुसलमान हैं। है ना कमाल की बात… कांग्रेस की परमप्रिय सेक्युलर मुस्लिम लीग कितनी ज्यादा सेक्युलर है ये अबतक आपने पढ़ा, अब हम आपको बताएंगे मुस्लिम लीग का काला इतिहास..
जिन्ना की मुस्लिम लीग से कैसे संबंध?
आजादी से पहले ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ की स्थापना 30 दिसंबर, 1906 को हुई थी। तब अविभाजित भारत के कई मुस्लिम नेता ढाका में इकट्ठे हुए और कांग्रेस से अलग मुस्लिमों के लिए ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ बनाने का फैसला किया। इसके बाद 23 मार्च, 1940 को मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने लाहौर में एक अधिवेशन बुलाया। इस दौरान जिन्ना ने एक स्वतंत्र देश की स्थापना के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेते हुए ‘पाकिस्तान प्रस्ताव’ को अपनाया। लेकिन पाकिस्तान की मांग स्वीकार ना होती देख मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया। जिसके बाद देशभर में भीषण दंगे छिड़ गए थे, कलकत्ता की सड़कों पर हिंदुओं की लाशें बिछ गई थी 72 घंटे में अकेले कलकत्ता में ही 6 हजार से अधिक लोग मारे गए,जबकि 20 हजार से अधिक लोग घायल हो गए। और 1 लाख से अधिक लोग इस दर्दनाक दंगे में बेघर हो गए। इसी को द ग्रेट कोलकाता किल्लिंग्स कहते हैं। इसके बाद देश का बंटवारा हुआ और 14 अगस्त, 1947 को दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान दिखाई दिया। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ‘पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ बन गई।
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के बाद मार्च, 1948 में मद्रास में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की स्थापना हुई। माना जाता है कि 1947 में जब पाकिस्तान बना तो मुस्लिम लीग का वह धड़ा जो अलग राष्ट्र की मांग कर रहा था, पाकिस्तान चला गया। इसी मुस्लिम लीग में कुछ ऐसे नेता भी थे, जो पाकिस्तान नहीं गए। ये लोग खासतौर पर वे थे, जो दक्षिण भारत के रहने वाले थे। पाकिस्तान बनने के बाद दिसंबर 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत में रहने का निर्णय करने वाले पार्टी नेताओं को अपने भविष्य का फैसला खुद करने के लिए कह दिया। इसके बाद दक्षिण के मुस्लिम नेताओं ने चेन्नई में बैठक बुलाई, जहां इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
नेहरू ने किया जिसका विरोध राहुल को उसी से प्रेम ?
अब बड़ा सवाल ये उठता है कि जिस मुस्लिम लीग के जवाहर लाल नेहरू खिलाफ थे उसी से राहुल गांधी इतना प्रेम क्यों दिखा रहे हैं ? 2019 में राहुल गांधी की कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से गठबंधन किया, लेकिन इंटरेस्टिंग बात ये है कि गठबंधन के बावजूद भी राहुल गांधी की रैलियों में मुस्लिम लीग के झंडे ना के बराबर हुआ करते थे। मतलब साफ है कि कांग्रेस मुस्लिम लीग के साथ दोस्ती को छिपाना चाहती थी। लेकिन जैसे ही कांग्रेस को लगा कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार सकते हैं वैसे ही मुस्लिम लीग को हथियार बनाते हुए उन्हें मुस्लिम बाहुल्य वायनाड सीट से उतारने का फैसला किया गया। लेकिन कांग्रेस जो मुस्लिम लीग के साथ अपनी दोस्ती को छिपा रही थी उसका बड़ा कारण ये भी था कि उत्तर भारत में राहुल को जिस तरह से जनेऊधारी ब्राह्मण के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया था, वहां मुस्लिम प्रेम के चलते पार्टी को नुकसान ना उठाना पड़े।
IUML के कारनामे
चलिए अब आपको मुस्लिम लीग के काले कारनामे भी बता देते हैं.. शाहबानो केस में मुस्लिम लीग ने ही सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया था। उस समय मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे गुलाम महमूद बनातवाला, जो संसद में प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए, जिसको आधार बनाते हुए ही आखिर में राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था।
इसका आलावा 2003 में हुए बराड़ नरसंहार में भी मुस्लिम लीग का एकदम क्लियर कट नाम सामने आया था। इसके साथ ही देश में मुस्लिम लीग ने ही लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल किए जाने का विरोध किया था, मुस्लिम लीग इसी मामले में सरकार के खिलाफ संसद में प्रस्ताव भी लाई थी। इसके साथ ही मुस्लिम लीग तीन तलाक बिल और स्कूलों में लड़के-लड़कियों के साथ बैठने के खिलाफ भी रही है। इसके साथ ही आपको ये जानकर बड़ा गुस्सा भी आएगा कि मल्लापुरण और भद्रकाली मंदिर को भी हरे रंग से रंगने का काम इस पार्टी ने किया था। क्योंकि मंदिर कमिटी के अध्यक्ष मुस्लिम लीग के सांसद अब्दुल समद हैं।
जिस मुस्लिम लीग के लिए राहुल गांधी अमेरिका की धरती पर बैटिंग करते दिखाई दे रहे हैं उसका दूर-दूर तक धर्मनिरपेक्षता से कोई संबंध नहीं है। राहुल गांधी को ये समझना होगा कई आज की तारीख में मुस्लिम लीग भी मुस्लिमों की कितनी हितैसी है इसको लेकर खुद मुस्लिम आश्वस्त नहीं हैं। फिर आपको पूरे देश में मुस्लिम वोट मिल जाएगा इसकी क्या गारंटी है ?