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Patna High Court’s Decision : खुद का खर्च उठाने में असमर्थ तलाकशुदा मुस्लिम महिला गुजारा-भत्ता की हकदार, भले ही इद्दत अवधि के लिए किया गया हो भुगतान

Patna High Court’s Decision : पटना हाईकोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता संबंधी एक केस में मुस्लिम महिला के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट के जस्टिस जितेंद्र कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पूर्व में दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए यह आदेश दिया।

नई दिल्ली। पटना हाईकोर्ट ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता संबंधी एक केस में मुस्लिम महिला के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय का कहना है कि अगर तलाक के बाद कोई महिला खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है तो वो अपने पूर्व पति से गुजारा-भत्ता की हकदार होगी, भले ही उस महिला को इद्दत अवधि के लिए भुगतान किया गया हो। हाईकोर्ट के जस्टिस जितेंद्र कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पूर्व में दिए गए निर्णयों का हवाला देते हुए यह आदेश दिया। जज ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 का अस्तित्व धारा 125 सीआरपीसी के तहत उपलब्ध उपायों को नकार नहीं सकता है।

जस्टिस कुमार ने इस संदर्भ में ‘डेनियल लतीफी’ केस और ‘मोहम्मद अब्दुल समद’ केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का उल्लेख किया। लाइव लॉ के अनुसार इस मामले में याचिकाकर्ता महिला के मुताबिक 2007 में इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार प्रतिवादी जो कि उसका पूर्व पति है, के साथ निकाह हुआ था। इस शादी से उन दोनों के एक बेटी भी है। याचिकाकर्ता के अनुसार, शादी के बाद पति और ससुराल वालों ने 2 लाख रुपए और दहेज की मांग की। लड़की पक्ष की तरफ से जब दहेज की मांग पूरी नहीं की गई, तो पहले तो महिला को अत्याचार सहना पड़ा और बाद में ससुराल घर से निकाल दिया गया। इसके बाद महिला ने धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। महिला ने दावा किया कि उसका पति मुंबई में एक बुटिक चलाता है जहां से उसे 30 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी होती है साथ ही उसके पास कृषि भूमि है और वो एक अन्य दुकान का भी मालिक है। याचिकाकर्ता ने अपने और अपनी बेटी के भरण पोषण के लिए 20 हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता मांगा। हालांकि उसके पति ने दहेज और अत्याचार के आरोपों को नकारते हुए आरोप लगाया कि उसकी पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध हैं।

पूर्व पत्नी और बेटी को 2-2 हजार रुपए प्रतिमाह देने का आदेश

पति ने कहा कि महिला ने खुद ही ससुराल लौटने से मना किया था इसके बाद गांव की पंचायत में उसे तीन तलाक देकर इद्दत की अवधि के लिए भरण-पोषण का भुगतान किया गया था। पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता महिला और उसकी बेटी दोनों को भरण-पोषण की हकदार बताया। साथ ही पति के अन्य आश्रितों, जिनमें उसके वृद्ध मां, बाप और दूसरी पत्नी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि हर महीने दो-दो हजार रुपए गुजारा भत्ता अपनी पूर्व पत्नी और बेटी को दे।

क्या है इद्दत अवधि?

जब किसी मुस्लिम महिला का अपने पति से तलाक हो जाता है या उसके पति की मृत्यु हो जाती है तो उस महिला को कुछ समय अकेले (पुरुषों से दूर) गुजारना पड़ता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वो गर्भवती नहीं हैं। इसे ही इद्दत अवधि कहते हैं। तलाकशुदा महिला के लिए इद्दत अवधि तीन महीने की होती है। जबकि पति की मौत हो जाने पर महिला को 4 महीने 10 दिन इद्दत अवधि में गुजारने होते हैं।