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Congress: रोटेशनल सीएम बनने के फॉर्मूले पर राजी नहीं हैं डीके शिवकुमार, खड़गे के सामने रख दी ये शर्त

Congress: सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सिद्धारमैया ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर शीर्ष नेतृत्व ढाई ढाई साल के फॉर्मूल पर विचार कर रही है, तो पहले कार्यकाल उन्हें मिलना चाहिए, क्योंकि वो अपने समर्थकों से पहले यह कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है। तो ऐसी सूरत में पार्टी संवेदना से इस पर विचार करें, लेकिन ध्यान रहे कि इससे पहले आखिरी चनाव वाले दांव कई मर्तबा चले जा चुके हैं।

नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से जो लोग कांग्रेस की दुर्गति पर शोध कर यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि आखिर जिस पार्टी का कभी पूरे देश में भौकाल हुआ करता था। जिसका कभी चौतरफा जलवा हुआ करता था। राजनीतिक दंगल में जिसके हर दांव से प्रतिद्वंदियों के चारों खाने चित्त हो जाया करते थे। आज भला ऐसा क्या हो गया कि उसने अपनी दुर्गति की सारी हदें पार कर दीं। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? तो आपको बता दें कि अगर आप कांग्रेस की दुर्गति की वजह तलाशने वालों की जमात में शुमार हैं, तो आपको थोड़ा कर्नाटक में झांकना चाहिए, जहां अभी मुख्यमंत्री पद को लेकर माथापच्ची का दौर जारी है। आज कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की राष्ट्री मल्लिकार्जुन खड़गे से इसी सिलसिले मे मुलाकात हुई। दरअसल, कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व अब ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर विचार कर रही है।

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ढाई साल डीके शिवकुमार को और बाकी के ढाई साल सिद्धारमैया को सीएम बनाने पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक डीके ने स्पष्ट कर दिया कि वो ढाई-ढाई साल वाले फ़ॉर्मूले पर राजी नहीं हैं। वो पूरे पांच साल तक सीएम बनना चाहेंगे। उनका दावा है कि उन्होंने पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का काम किया है। डीके ने यह भी कहा कि बीते दिनों उन्होंने सोनिया गांधी से यह वादा भी किया था कि वो कांग्रेस को सत्ता में लाकर रहेंगे जो कि उन्होंने कर दिखाया है, तो ऐसी सूरत में उन्हें सीएम पद से विभूषित किया जाना चाहिए, लेकिन ध्यान रहे कि डीके पर मनी लॉन्ड्रिंग सहित कई अन्य गंभीर आरोप लग चुके हैं और पार्टी ने ऐसी सूरत में कर्नाटक में अपार सफलता हासिल की है, जब कुछ माह बाद लोकसभा चुनाव भी होने हैं, तो ऐसी सूरत में कांग्रेस अब इस पशोपेश से कैसे बाहर निकलती है। यह देखना रोचक रहेगा।

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उधर, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, सिद्धारमैया ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर शीर्ष नेतृत्व ढाई ढाई साल के फॉर्मूल पर विचार कर रही है, तो पहला कार्यकाल उन्हें मिलना चाहिए, क्योंकि वो अपने समर्थकों से पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव है। तो ऐसी सूरत में पार्टी संवेदना से इस पर विचार करें, लेकिन ध्यान रहे कि इससे पहले आखिरी चनाव वाले दांव कई मर्तबा चले जा चुके हैं। अगर आपको ध्यान हो तो गत बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी नीतीश ने ऐलान किया था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा, लेकिन इसके बाद क्या हुआ। हम सभी जानते हैं, तो ऐसी सूरत में आखिरी चुनाव वाले दांव पर भी आंख मूंदकर भरोसा करना मुनासिब नहीं रहेगा। बता दें कि बीते दिनों कर्नाटक में जारी सियासी माथापच्ची को ध्यान में रखते हुए विधायक दल की बैठक में बाकायदा प्रस्ताव पारित कर मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा चयन करने की जिम्मेदारी मल्लिकार्जुन खड़गे को दी गई थी। हालांकि, खड़गे के यहां बैठकों और मुलाकातों का सिलसिला जारी है। अब वो आगामी दिनों में क्या कुछ कदम उठाते हैं। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।