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Badrinath Temple: आज रात से चारधाम यात्रा का होगा समापन, विधि विधान से बदरीनाथ मंदिर के कपाट किए जाएंगे बंद

Badrinath Temple: उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का इस साल के लिए आज रात समापन होगा। आज रात 9.07 बजे बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। बाकी तीनों धाम केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट पहले ही बंद हो चुके हैं।

चमोली। उत्तराखंड की प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का इस साल के लिए आज रात समापन होगा। आज रात 9.07 बजे बदरीनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। बाकी तीनों धाम केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट पहले ही बंद हो चुके हैं। भगवान बदरीनाथ के मंदिर के कपाट बंद होने के बाद उनकी पूजा अब जोशीमठ में की जाएगी। वहीं, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की पूजा भी अन्य तयशुदा जगह हो रही है। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट अब 2025 में गर्मी के मौसम के दौरान भक्तों के लिए खोले जाएंगे। हर साल लाखों की तादाद में भक्त इन मंदिरों में दर्शन के लिए जाते हैं।

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुताबिक आज भगवान बदरीविशाल के मंदिर के कपाट बंद होने से पहले मंदिर के रावल यानी मुख्य पुजारी अमरनाथ नंबूदिरी महिला का वेश धारण कर माता लक्ष्मी की प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित करेंगे। वो लक्ष्मी जी की सखी के तौर पर ऐसा करते हैं और इसी कारण महिला का वेश धारण करते हैं। इसके बाद भगवान बदरीविशाल और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियों को पास के ही माणा गांव की महिलाओं के बनाए घी से लेपकर उनको कंबल ओढ़ा दिया जाएगा और फिर कपाट को अगले गर्मी के सीजन तक बंद किया जाएगा। माना जाता है कि कपाट बंद होने के बाद भगवान बदरीनाथ की सेवा देवताओं की तरफ से नारद मुनि करते हैं।

 

केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट बंद होने से पहले कई धार्मिक कर्मकांड किए जाते हैं। इसी तरह के विशेष कर्मकांड बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से पहले भी होते हैं। कपाट बंद होने से पहले पंचपूजा करने का विधान प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। भगवान बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। नर और नारायण पर्वतों के बीच स्थित बदरीनाथ मंदिर के पास ही उनकी मां के नाम पर गुफा भी है। आदि शंकराचार्य के बनाए नियमों के तहत बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत से ही होते हैं। ऐसा उन्होंने उत्तर और दक्षिण भारत को एकसूत्र में पिरोने के लिए किया था।