
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब बैन पर एकमत जाहिर नहीं किया। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की राय इस मामले में अलग-अलग रही। इस वजह से कर्नाटक में हाईकोर्ट का वो फैसला जारी रहेगा, जिसमें उसने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर बैन लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था। यानी कर्नाटक के सरकारी स्कूल और कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं को बिना हिजाब के ही अभी आना होगा। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील वरुण सिन्हा ने ये जानकारी दी। वकील वरुण सिन्हा के मुताबिक अभी कर्नाटक में हाईकोर्ट का फैसला ही लागू रहेगा। क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने अर्जी को सही बताते हुए सरकार के आदेश को रद्द किया है।
अभी हाई कोर्ट का फैसला लागू रहेगा क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने उसे खारिज नहीं किया है। अब हाई कोर्ट का फैसला तब तक जारी रहेगा जब तक किसी बड़े बेंच का फैसला नहीं आ जाता है: वकील वरूण सिन्हा https://t.co/1bgH001U9A pic.twitter.com/raVsRFC7da
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 13, 2022
बता दें कि जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पर बैन का कर्नाटक सरकार का फैसला सही है। वहीं, जस्टिस धूलिया ने कहा कि वो इससे इत्तिफाक नहीं रखते। जस्टिस धूलिया ने कहा था कि मुस्लिम लड़कियों को भी शिक्षा का हक है और किसी आदेश की वजह से इसपर रोक नहीं लगनी चाहिए। उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 19 और 25 का मामला बताया था। बेंच ने इस मामले को फैसले के लिए बड़ी बेंच के पास भेजने की सिफारिश की है। ये मामला अब 3 जजों की सुप्रीम कोर्ट बेंच सुनेगी।
हम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं। हमने बेहतर फैसले की उम्मीद की थी क्योंकि दुनिया भर की महिलाएं हिजाब और बुर्का नहीं पहनने की मांग कर रही हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय का आदेश अंतरिम समय में लागू रहेगा: कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश, बेंगलुरु pic.twitter.com/m1hqkCcLAq
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 13, 2022
मुस्लिम धर्मगुरुओं ने जस्टिस धूलिया के फैसले का स्वागत किया है। वहीं, कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा कि उन्हें बेहतर फैसले की उम्मीद थी। बता दें कि कर्नाटक के उडुपी में हिजाब का मामला इस साल की शुरुआत में गरमाया था। तब 6 छात्राएं सरकारी कॉलेज में हिजाब पहनकर जाने पर अड़ी थीं। कर्नाटक सरकार ने इस पर बैन लगाया था। छात्राएं इस बैन के खिलाफ हाईकोर्ट गई थीं। जहां से उनको राहत नहीं मिली थी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।