लखनऊ। यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए पहले दौर यानी 10 फरवरी को वोट पड़ने जा रहे हैं। इस दिन पश्चिमी यूपी में चुनावी समर होगा। पहले दौर में 58 सीटों के लिए लोग अपने अधिकार का प्रयोग करेंगे और अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनेंगे। यूपी में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी और सपा-आरएलडी गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होने की उम्मीद है। इस मुकाबले की वजह है 136 सीटें। इनमें से ज्यादातर हासिल करने में सफल होने वाला ही यूपी की सत्ता के करीब पहुंचेगा। खास बात ये भी है कि इन सीटों में से 120 सीटों पर किसान ही फैसला करेंगे कि जीतेगा कौन और हारेगा कौन। ऐसे में हर हाल में ज्यादातर सीटों को हासिल करने के लिए सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीजेपी के नेता जुट गए हैं।
साल 2012 और 2017 के नतीजे देख लें, तो पश्चिमी यूपी को फतह करने वाले को ही सत्ता मिली है। साल 2012 के चुनाव में सपा ने यहां की 58 सीटें जीती थीं। जबकि, बीजेपी को सिर्फ 20 सीटें मिल सकी थीं। नतीजे में लखनऊ में अखिलेश यादव ने सत्ता हासिल की थी। उसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की 109 सीटों पर जीत हासिल की थी और सपा को सिर्फ 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। नतीजा सबको पता है। यानी ये साफ है कि पश्चिमी यूपी का मैदान जो भी मारेगा, उसके लिए लखनऊ ज्यादा दूर नहीं रह जाएगा। यही वजह है कि हर पार्टी यहां अपना दमखम दिखाने में जुटी हुई है।
किसान आंदोलन बीते दिन ही खत्म हुआ है। ऐसे में उनके बीजेपी के प्रति गुस्से को भुनाने के लिए अखिलेश यादव अब किसानों की बात करने लगे हैं। उन्होंने बिना ब्याज किसानों को कर्ज देने, मुफ्त बिजली देने जैसे वादे किए हैं। वादे हकीकत में वो जमीन पर उतारेंगे, ये दिखाने के लिए कल अखिलश ने मीडिया के सामने अन्न संकल्प तक किया है। यानी अनाज हाथ में लेकर संकल्प किया कि वो चुनाव बाद अपने वादे निभाएंगे। वहीं, बीजेपी भी उनका काट खोजने के लिए केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को मैदान में उतार चुकी है। बालियान ने कल ही जाकर भारतीय किसान यूनियन के नेता और किसान आंदोलन में शिरकत करने वाले राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत से मुलाकात की। इसके बाद ही नरेश टिकैत अपने उस बयान से पलट गए, जिसमें उन्होंने सभी से सपा-आरएलडी के पक्ष में वोट करने के लिए कहा था। नरेश टिकैत की इसी पलटी से अखिलेश की चिंता बढ़ी जरूर होगी। वजह ये है कि पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर इस खानदान का असर है। वहीं, 23 जनवरी से खुद अमित शाह भी यूपी के समर में कूदने जा रहे हैं। पिछली बार शाह ने यहां के किसानों को बीजेपी के पक्ष में मना लिया था। ऐसे में पश्चिमी यूपी की सियासी जंग बहुत दिलचस्प होने जा रही है।