नई दिल्ली। आगामी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा तो बाद में खोला जाएगा, लेकिन अभी तो यह आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोलने में जुट गए हैं। जी हां… हम बात कर रहे हैं पटना में आयोजित हुई विपक्षी दलों की बैठक की। आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व मोदी सरकार के विरोध में माहौल बनाने के मकदस से बैठक हुई , जिसमें करीबन 17 विपक्षी दल शामिल हुए। सभी ने प्रेसवार्ता में मोदी सरकार के विरोध में माहौल बनाने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जताई। लेकिन अब देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या आगामी दिनों में यह विपक्षी दल अपनी प्रतिबद्धता को वास्तविकता में तब्दील कर पाएंगे। बहरहाल, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि विपक्षी एकता में फूट की खबरें सामने आ रही हैं। दरअसल, आप संयोजक अरविंद केजरीवाल और उमर अब्दुल्ला के बीच तीखी बहस हो गई, जिससे स्पष्ट है कि यह विपक्षी एकता मूर्त रूप धारण करने से पहले ही विफल साबित हो रही है। वहीं, इस बहस के दौरान शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यह समय आपस में खींचतान करने का नहीं, बल्कि मोदी सरकार की तानाशाही के खिलाफ एकजुट होना का है।
अगर हम आपस में यूं ही लड़ते रहेंगे तो मोदी सरकार के विरोध में सियासी माहौैल कैसे बना पाएंगे। लेकिन दोनों की अपीलों का ना ही केजरीवाल पर कोई असर पड़ा और ना ही उमर अब्दुल्ला पर। जहां एक तरफ सीएम केजरीवाल केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के विरोध में विपक्षी दलों के समर्थन की मांग की पैरोकारी करते रहे, तो वहीं उमर अब्दुल्ला ने उनसे केंद्र द्वारा निरस्त किए गए धारा 370 के फैसले पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। वहीं, केजरीवाल बैठक खत्म होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में शामिल हुए बिना ही वहां से रवाना हो गए, जिससे साफ जाहिर होता है कि वे नाराज हैं। हालांकि, जब प्रेसवार्ता में केजरीवाल की गैर मौजूदगी को लेकर सवाल किया गया, तो नीतीश कुमार ने कहा कि उनके फ्लाइट का समय था, इसलिए उन्हें जाना पड़ गया। उधर, केजरीवाल की कांग्रेस के साथ भी अध्यादेश को लेकर नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं।
#BREAKING | पटना बैठक में दिल्ली अध्यादेश पर मतभेद
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— ABP News (@ABPNews) June 23, 2023
दरअसल, कांग्रेस भी उमर अब्दुल्ला के तर्ज पर अध्यादेश को समर्थन देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस ने केजरीवाल पर आरोप लगाया है कि वो बीजेपी के पक्ष में हैं। ऐसे में अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विपक्षी एकता में फूट अब अपने चरम पर पहुंच चुकी है। अब अगर यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को शिकस्त देने का सपना महज सपना ही रह जाएगी और एक बार फिर से बीजेपी बाजी मारने में सफल हो जाएगी। बहरहाल, अब आगामी दिनों में सूबे की सियासी स्थिति कैसी रहती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।