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Sant Shivir at Sarangpur : परम पूज्य महंतस्वामी महाराज के सानिध्य में चार दिवसीय संत शिविर का हुआ आयोजन

Sant Shivir at Sarangpur : संत शिविर का शुभारम्भ सारंगपुर में 24 अप्रैल को किया गया और 27 अप्रैल को इसका समापन हुआ। इस शिविर में लगभग 700 संत शामिल हुए।

सारंगपुर। परम पूज्य महंतस्वामी महाराज के सानिध्य में धर्म, ज्ञान और भक्ति पर चिंतन संबंधी चार दिवसीय संत शिविर का आयोजन सारंगपुर में किया गया। इस शिविर में लगभग 700 संत शामिल हुए। संत शिविर का शुभारम्भ 24 अप्रैल को किया गया और 27 अप्रैल को इसका समापन हुआ। सारंगपुर में चार दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ संत समागन शिविर का आयोजन किया गया।

बीएपीएस यानी बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था एक आध्यात्मिक, स्वयंसेवक-संचालित फ़ेलोशिप है जो आस्था, सेवा और वैश्विक सद्भाव के हिंदू मूल्यों को बढ़ावा देकर व्यक्तिगत विकास के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है। समय-समय पर संस्था की ओर से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस सस्था की नींव भगवान स्वामीनारायण ने 18वीं शताब्दी के आखिरी में रखी थी। बाद में साल 1907 में शास्त्रीजी महाराज ने विधिवत इसकी स्थापना की।

स्वामीनारायण संप्रदाय के लोग भक्ति संप्रदाय को मानते हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय की मान्यता है कि बिना किसी संत की शरण में जाए मनुष्य का उद्धार नहीं हो सकता है। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के आज दुनिया भर में 1200 से ज्यादा मंदिर हैं, जिसमें विदेशों में सर्वाधिक संख्या अमेरिका में है। वहीं भारत में स्वामीनारायण संस्था के छोटे-बड़े मिलाकर लगभग 800 से ज्यादा मंदिर हैं। हाल ही में मुस्लिम देश यूएई में भी इसी संस्था द्वारा मंदिर बनावाया गया जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल फरवरी में किया है।

इससे पहले सारंगपुर में परम पूज्य महंतस्वामी महाराज के सान्निध्य में पिछले सप्ताह ही ऐतिहासिक पुष्पदोलोत्सव मनाया गया था। इस पुष्पदोलोत्सव का लाभ उठाने देश-विदेश से लगभग 75000 भक्त सारंगपुर पहुंचे थे। भगवान स्वामिनारायण ने वडताल, गढ़पुर, सारंगपुर, अहमदाबाद जैसे विभिन्न स्थानों पर पुष्पदोलोत्सव आयोजित करके गुजरात की धरा को पावन किया था । यह कार्यक्रम उनकी चिरस्थायी स्मृति में सारंगपुर में हर वर्ष मनाया जाता है। परमपूज्य प्रमुखस्वामी महाराज हर वर्ष सारंगपुर में पुष्पदोलोत्सव का त्योहार धूमधाम से मनाते थे, जिसकी स्मृतियाँ आज भी देखने को मिलती हैं। वे आशीर्वाद देते हुए कहते थे कि संसार के रंग में तो सभी रंगे हैं, लेकिन हमें भगवान के रंग में रंगना है।