नई दिल्ली। आपको यकीन करना पड़ेगा कि भारत में रोटी, कपड़ा और मकान के बाद लोगों की चौथी दरकार अगर कुछ है, तो वो है सिनेमा। जी हां….चौंकिएगा मत…बिल्कुल सौ टका…सच्ची बता रहे हैं…जमाना बदला…लोग बदले…समाज बदला…स्थिति बदली…परिस्थितियां बदलीं, लेकिन अगर नहीं कुछ बदला तो वो है लोगों का सिनेमा के प्रति अथाह प्रेम। आज भी लोगों को जब खबर लगती है कि फलां एक्टर की फिल्म आने वाली है, तो लोगों का सिनेमाई प्रेम इस कदर हिलोरे मारने लगता है कि लोग अपना सारा काम-धंधा, छोड़-छाड़ कर बस फिल्म देखने के जुगाड़ में लग जाते हैं। सिनेमाई इतिहास इस बात की बखूबी तस्दीक करता है कि भारतीय दर्शकों ने कभी- कभी तो फिल्मों के प्रति अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया लेकिन हां…..कई बार लोगों का फिल्मों के प्रति गुस्सा भी भड़का। लोगों ने फिल्मों के प्रति अपनी नाराजगी भी जताई। जब फिल्म निर्माण की आड़ में ऐतिहासिक तथ्यों और सत्यों का उपहास उड़ाया गया, तो लोगों की फिल्मी चेतना इसे बर्दाश्त नहीं कर सकी, तो लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध का झंडा उठाने से भी गुरेज नहीं किया। वहीं, जब लोगों को फिल्में पसंद आई, तो लोगों ने उस एक्टर और फिल्म निर्माता को अपने आंखों का तारा बनाने से भी कोई गुरेज नहीं किया।
उधर, फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों ने दर्शकों के विशाल भंडार को अपनी ओर रिझाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। किसी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरोध में फिल्में बना डाली तो किसी ने देशभक्ति की फिल्मों का सैलाब बहा दिया तो किसी ने राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार पर फिल्में बनाकर सियासी नुमाइंदों को आईना दिखाने का काम किया, तो किसी ने प्रेम कहानी पर फिल्म बनाकर भारी मुनाफा कमाया, तो किसी ने पारिवारिक कलह पर फिल्में बनाकर सुर्खियों के संमुदर में गोता लगाया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कुछ तथाकथित फिल्म निर्माताओं ने हदें पार कर दीं हैं।
कोई गुरेज नहीं यह कहने में कि इन लोगों ने अपनी फिल्मों के जरिए अपने दिमाग की गंदी, वाहियात और घटिया उपज को समाज के समक्ष प्रस्तुत करके हमारी नई पौध (युवाओं) को दिग्भ्रमित करने का काम किया है। इन निर्माताओं के ऐसे कुकृत्यों की जितनी निंदा की जाए, कम है, लेकिन इस विडंबना को भी हमें स्वीकार करना होगा कि हमारे दर्शकों ने भी ऐसे निर्माताओं की गंदगी को सहर्ष स्वीकार करके अपनी वीभत्स मानसिकता का परिचय दे ही दिया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से आधुनिकता की गर्भ की उपज कहे जाने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मनोरंजन के नाम पर प्रस्तुत की जाने वाली सामग्रियों ने तो हद ही कर दी।
इन सामग्रियों ने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दीं। ऐसी सामग्रियों पर अंकुश लगाने के प्रति प्रतिबद्धता कई मौकों पर केंद्र की मोदी सरकार द्वारा भी जाहिर की जा चुकी है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है। ओटीटी के जरिए पेश होने वाली मनोरंजन सामग्रियों ने समाज में गंदगी फैलाई है, उससे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। वहीं, इन्हीं सब मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने ‘ओवर द टॉप : OTT का मायाजाल’ नामक पुस्तक लिखी है, जो कि अभी खासा सुर्खियों में है। यह पुस्तक अपनी अद्भुत और विशेष सामग्री के लिए पाठकों के बीच चर्चा में है। पाठक वर्ग के बीच इस पुस्तक की मांग अपने चरम पर पहुंच चुकी है। लोगों का रुझान इस पुस्तक के प्रति काफी बढ़ रहा है।
लोगों को यह पुस्तक काफी रास आ रही है। आखिर आए भी क्यों ना। क्योंकि इस पुस्तक ने उन सभी फिल्म निर्माताओं या यूं कहें कि मनोरंजन के नाम पर अश्लील सामग्रियां बनाने वाले निर्माताओं को आईना दिखाने का काम किया है। 214 पृष्ठों की इस पुस्तक में लिखी सामग्रियों को इस छोटे से लेख में समाहित करना नामुमकिन है, लेकिन सधे शब्दों में कहे तो ओटीटी के परिपेक्ष्य में इस पुस्तक की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। यह पुस्तक में ओटीटी से पड़ने वाले ना महज वर्तमान दुष्प्रभावों को रेखांकित किया गया है, बल्कि इससे भविष्य में पड़ने वाले असर के बारे में भी बताया गया है। कुल मिलाकर यह पुस्तक उन सभी फिल्म निर्माताओं के लिए एक आईना है, जो कि अश्लील सामग्रियों का सहारा लेकर अपने फिल्मी करियर को बुलंदियों पर पहुंचाने का जिम्मा अपने कुपोषित कांधों पर ले चुके हैं।