
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थी मामले से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बेहद सख्त टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत देश कोई धर्मशाला नहीं है जो दुनियाभर के शरणार्थियों को यहां रखा जाए। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि हमारे देश की आबादी पहले से ही 140 करोड़ है ऐसे में हम किसी दूसरे देश से आए शरणार्थी का स्वागत नहीं कर सकते। श्रीलंका के तमिल नागरिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने उसे राहत देने से इनकार कर दिया। श्रीलंकाई नागरिक ने खुद को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ याचिका दायर कर भारत में रहने की अनुमति मांगी थी।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को अपने देश में जान का खतरा है तो वो किसी और देश चला जाए, उसे भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। याचिकाकर्ता को साल 2015 में एलटीटीई संगठन से जुड़े होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 2018 में ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी करार देते हुए 10 साल जेल की सजा सुनाई थी।
बाद में जब याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की तो उसकी सजा को घटाकर 7 साल कर दिया गया। साथ ही यह भी आदेश कि सजा पूरी होते ही वो भारत छोड़कर चला जाए। अब याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए भारत में रहने देने का अनुरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, यहां किस अधिकारी से आपका क्लाइंट बसना चाहता है। तब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह एक शरणार्थी है और श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है। इस पर अदालत ने स्पष्ट कहा कि अगर ऐसी बात है तो वो किसी अन्य देश में चला जाए।