
नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा ही में की गई उस टिप्पणी नाराजगी जताई है जिसमें राष्ट्रपति को निर्देशित किया गया था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा निर्धारित की है। इस पर उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142, जो सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार देता है वो लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ न्यायपालिका के लिए चौबीस घंटे उपलब्ध एक परमाणु मिसाइल बन गया है।
राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बाद, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को… pic.twitter.com/LvrU1eqBgQ
— IANS Hindi (@IANSKhabar) April 17, 2025
तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधानसभा द्वारा भेजे गए बिल पर राज्यपाल को एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा निर्धारित करते हुए कहा कि किसी बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के में निर्णय लेना होगा। अगर बिल पर निर्णय लेने में देरी होती है तो उसका कारण बताना होगा। सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्यपाल आर.एन. रवि ने राज्य के कई जरूरी बिलों को रोककर रखा है।
जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए कहा था कि अगर कोई विधेयक राष्टपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति उससे सहमत नहीं हैं तो उसे वापस पुनर्विचार के लिए भेजते हैं लेकिन एक बार उसके बाद जब बिल दोबारा राष्ट्रपति के पास आए तो उस पर अंतिम निर्णय लेना होगा। बिल को बार-बार लौटाने की प्रक्रिया को रोकना होगा और इसे लंबे समय तक लटकाकर नहीं रख सकते।