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Birth Anniversary: तमिल फिल्मों की हीरोइन रहीं जयललिता, जानिए कैसे बनीं तमिलनाडु की अम्मा?

Birth Anniversary: जयललिता ने अपने पूरे जीवन मे कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना बड़ी बहादुरी से किया। फिल्मों में जबरदस्त कामयाबी पाने के बाद उन्होंने राजनीति में भी जबरदस्त सफलता हासिल की।

नई दिल्ली। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की आज जयंती है। तमिलनाडु की जनता आज भी उन्हें बहुत प्यार करती है और उन्हें प्यार से अम्मा कहकर बुलाती है। कभी कभी पुरातची तलाईवी (‘क्रांतिकारी नेता’) कहकर बुलाते हैं। जयललिता ने अपने पंचवर्षीय कार्यकाल में जनता की भलाई के लिए खूब काम किए। 24 फरवरी, 1948  को कर्नाटक के मेलुरकोट गांव के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मीं जयललिता ने ‘अम्मा कैंटीन’ की शुरूआत की थी, जहां बेहद कम दामों पर भोजन उपलब्ध कराया जाता है। जयललिता ने अपने शासन के दौरान जनता के लिए अम्मा नाम से एक नया ब्रांड ही शुरू कर दिया, जिसके अंतर्गत तमिलनाडु में अम्मा मिनरल वॉटर, अम्मा सब्जी की दुकान, अम्मा फार्मेसी यहां तक कि अम्मा सीमेंट भी सस्ती कीमत पर बाजारों में मिलने लगे। अपने कामों और प्रयासों से जयललिता की लोकप्रियता बढ़ती गई।

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उनकी लोकप्रियता और सफलता की एक बड़ी वजह ये भी थी कि पिछली बार की तरह उनके ऊपर भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा। कर्नाटक हाईकोर्ट से भ्रष्टाचार के एक पुराने मामले में बरी होने के बाद से उनका और उनके समर्थकों का मनोबल लगातार बढ़ता चला गया साथ ही जनता का विश्वास जीतने में भी कामयाब हो गईं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान जब बाकी राज्यों में नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही थी तब जयललिता की पार्टी ने तमिलनाडु में 39 में 37 सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि जयललिता ने अपने पूरे जीवन मे कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का सामना बड़ी बहादुरी से किया। फिल्मों में जबरदस्त कामयाबी पाने के बाद उन्होंने राजनीति में भी जबरदस्त सफलता हासिल की। एमजी रामचंद्रन के राजनीति में जाने के बाद से करीब 10 साल तक जयललिता से उनका कोई संबंध नहीं रहा, लेकिन 1982 में एम जी रामचंद्रन उन्हें राजनीति में ले आए। हालांकि जयललिता ने ये बात कभी स्वीकार नहीं की।

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रामचंद्रन की इच्छा थी कि जयललिता राज्यसभा जाएं क्योंकि उनकी अंग्रेजी काफी अच्छी थी। जयललिता 1984-1989 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं, साथ ही उन्हें पार्टी का प्रचार सचिव भी नियुक्त किया गया। कहा जाता है कि करूणानिधि द्वारा रामचंद्रन पर लगातार लगाए जा रहे आरोपों से परेशान होकर उन्होंने जयललिता को मदद के लिए बुलाया। जयललिता एक शानदार वक्ता साबित हुईं और अपनी पार्टी का पक्ष शानदार तरीके से रखा। कहा जाता है कि वो भाषण को रट लेती थीं, जिससे उनके भाषणों में खूब भीड़ जुटती थी। एक महिला का प्रचार सचिव के पद पर होना पार्टी में बड़े ओहदों पर बैठे नेताओं को रास नहीं आया, जिसके बाद धीरे-धीरे रामचंद्रन और जयललिता के बीच रिश्ते में दरार पैदा होनी शुरू हो गई।

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साल 1987 में रामचंद्रन के निधन के दौरान उनकी अन्नाद्रमुक पार्टी दो हिस्सों में बंट गई थी। जिसके एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता। जयललिता ने रामचंद्रन की करीबी होने के कारण खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। एक किस्सा ये भी सुनने में आता है कि जो लोग जयललिता को पसंद नहीं करते थे उन्होंने विधानसभा में बहस के दौरान हुए हंगामे में उनकी साड़ी और बाल खींचकर उन्हें बेइज्जत किया था, जिसके बाद उन्होंने कसम खाई थी कि अब मुख्यमंत्री बन कर ही विधानसभा में लौटेंगी।

काफी अड़चनों के बावजूद 1991 में वो पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री चुनी गईं। जयललिता न केवल तमिलनाडु की पहली निर्वाचित महिला मुख्यमंत्री बनीं, बल्कि सबसे कम उम्र में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। जयललिता ने अपने शासन में काफी सख्ती बरती, जिसके कारण उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था। 5 दिसम्बर 2016 को रात 11:30 बजे जयललिता का निधन हो गया, जिससे तमिलनाडु में मातम छा गया। उनकी शव-यात्रा में शामिल होने के लिए भारी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे।