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लक्ष्मी से कैसे बनी Lakme? ऐसे तय किया फर्श से लेकर अर्श तक का सफर

indian makeup brand lakme: हालांकि, जितना यह सफर हर्फों में पढ़ते हुए आसान लगता है। असल मयानों में यह उतना आसान नहीं था। यह सफर चुनौतियों से भरा था। 80 के दशक में जब सरकार ने देश में बने कॉस्मेटिक उत्पाद पर भी 100 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाना शुरु कर दिया, तब चीजें और मुश्किल हो गईं।

नई दिल्ली। सौंदर्यता की पूरक बनी Lakme के सुहावने सफर के बारे में आप जानते हैं? क्या आपको पता है कि कैसे Lakme ने फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया? कैसे Lakme ने शून्य से लेकर शिखर तक का सफर तय कर सभी के दिल में अपनी एक खास जगह बनाई। Lakme ने आज की तारीख में हर महिलाओं की श्रंगार बॉक्स में अपने लिए एक खास जगह बनाई हुई है। Lakme की कहानी न महज दिलचस्प है, बल्कि प्रेरणादायी भी है। Lakme का सफर आपको बताता है कि कैसे आप विपरीत परिस्थितियों को मात देते हुए अपने लिए सफलता के मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। चलिए, आगे इस रिपोर्ट में हम लक्ष्मी से Lakme बनने के इसके सफर के बारे में जानते हैं।

लक्ष्मी से कैसे बना Lakme?

Lakme की कहानी को तफसील से समझने के लिए आपको चलना होगा हमारे साथ आज से सात दशक पीछे उस दौर में जब भारत ने असहनीय त्रासदी का सामना कर आजादी हासिल की थी। उस वक्त सौंदर्यता के लिए उच्च साधन पर बहुत ही कम लोग आश्रित हुआ करते थे। आखिर होते भी कैसे। अपने नाजुक दौर से गुजर रही देश की अर्थव्यवस्था में लोगों को दो जून की रोटी ही मयस्सर हो जाए, यही बहुत बड़ी बात थी, सौंदर्यता के लिए उच्च साधन पर बहुत ही कम लोग आश्रित हआ करते थे। अब ऐसी खस्ताहाल स्थिति में देश के कॉस्मेटिक्स उद्योग की क्या स्थिति होगी। इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं। लिहाजा भारत कॉस्मेटिक्स पदार्थों को प्राप्त करने के लिए विदेशों पर आश्रित था। जिसका व्यापक असर विदेशी मुद्रा पर पड़ता था। इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कॉस्मेटिक्स उद्योग शुरू करने के लिए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उस वक्त उद्योगपति जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा से संपर्क किया। लैक्मे को टाटा ऑयल मील्स कंपनी की सहायक कंपनी के तौर पर शुरू किया गया था और बहुत विचार-विमर्श के बाद, इसे लक्मे (Indian Makeup brand Lakme) नाम दिया गया। यह नाम धन और सुंदरता की देवी लक्ष्मी से प्रभावित था।

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वैसे यह एक फ़्रेंच शब्द है, जिसका अर्थ भी लक्ष्मी ही होता है। हालांकि, इसका नाम लक्ष्मी ही रखने पर विचार किया गया था, लेकिन लेक्मी नाम रखने के पीछे इसका खास मकसद यह था कि मा लक्ष्मी को विदेशी मंच पर सुंदरता का प्रतीक न माना जाए। यह उस समय की बात है, जब देसी घरों में सुंदरता के लिए ‘दादी के नुस्खे’ या फिर टेलकम पाउडर के आसपास ही नजरें घूमती थीं। अगर इसे लक्ष्मी नाम दे देते, तो शायद यह भी एक लोकल प्रोडक्ट तक सीमित होकर रह जाता। दिलचस्प बात यह है कि लैक्मे, एक फ़्रेंच ओपेरा भी है। भारतीय बाजार विशेषज्ञों ने उस वक्त इस पर विशेष ध्यान देने के लिए इसके क्षेत्रों पर जोर दिया। ताकि इसे एक नई पहचान मिल सकें। हालांकि, शुरूआत में पहले यह महज कुछ महिलाओं की सौंदर्यता तक की सीमित रही थी। लेकिन बाद में यह समाज के हर महिलाओं तक पहुंचने में सफल रही। पहले यह महज दबंग किस्म की महिलाओं तक ही सीमित थी, लेकिन बाद यह समाज की हर किस्म की महिलाओं तक पहुंचने में सफल रही।

सिमोन ने साल 2007 में रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, “मैं जब विदेश जाती थी, तो ब्यूटी प्रोडक्ट के सैंपल साथ लेकर जाती थी और उन्हें केमिस्ट को दे दिया करती थी, ताकि उनके स्पेसिफिकेशन के बारे में पता चल सके। पेरिस में मेरा एक कजिन रहता था, जिसे फैशन की काफी समझ थी। जब मैं पेरिस गई, तो पिता ने मुझे कपड़े खरीदने के लिए पैसे दिए थे। लेकिन मैंने उनसे कपड़े नहीं खरीदे। इसके बजाय प्रोफेशनल मेकअप सीखने के लिए अपने चचेरे भाई के साथ पार्लर चली गई। वहां मैंने सीखा कि कैसे अपनी त्वचा और टेक्सचर की देखभाल की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कहूं, तो मैंने कॉस्मेटिक उत्पादों का अध्ययन किया था। एक चीज़, मुझे दूसरी चीज़ की तरफ ले गई और यह सब एक बदलाव था।”

चुनौतियों से भरा रहा सफर 

हालांकि, जितना यह सफर हर्फों में पढ़ते हुए आसान लगता है। असल मयानों में यह उतना आसान नहीं था। यह सफर चुनौतियों से भरा था। 80 के दशक में जब सरकार ने देश में बने कॉस्मेटिक उत्पाद पर भी 100 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाना शुरु कर दिया, तब चीजें और मुश्किल हो गईं। इससे कंपनी के मार्जिन में कमी आने लगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिमोन ने इस मुद्दों को सुलझाने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। उन्होंने सिमोन से उन लोगों के हस्ताक्षर लाने के लिए कहा, जिन्हें इतना उत्पाद शुल्क अनुचित लगता है। उन्होंने इस काम को अंजाम दिया और बाद में केंद्रीय बजट में उत्पाद शुल्क को कम कर दिया गया था।

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जानिए इसकी बाजार की स्थिति

वहीं, अगर लैक्मे के बाजार की स्थिति की बात करें, तो 1996 में FMCG क्षेत्र में तेजी से बढ़ती कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेच दिया। आज, कंपनी के पास 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं और 70 से ज्यादा देशों में बेचे जाते हैं। इनकी रेंज 100 रुपये से लेकर 1000 तक है, जो हर तरह के ग्राहकों की डिमांड को पूरा करती है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कॉस्मेटिक ब्राण्ड से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, लैक्मे ने पिछले कई सालों में काफी कामयाबी हासिल की है। यह शायद उन कुछ ब्रांड्स में से एक है, जिन्होंने समाज को कई मायनों में बदला है। आज इस पड़ाव पर आकर पता लगता है कि यकीनन यह सफर इतना आसान नहीं था। नहीं था आसान अर्श से लेकर फर्श तक कहानी अपने नाम लिखना, मगर बेशक लेक्मी की यह न महज लोगों हमें यह बताती है कि कैसे अपने लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करें, बल्कि यह हमें प्रेरित भी करती है।