
नई दिल्ली। अदालतों में कई बार ऐसा होता है जब किसी केस की सुनवाई के दौरान जज साहब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पूर्व में दिए गए किसी निर्णय का हवाला देते हुए उस आधार पर अपना फैसला सुनाते हैं। कर्नाटक की सिविल कोर्ट में भी ऐसा ही कुछ हुआ। यहां सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए एक याचिका को खारिज कर दिया। अब इसमें हैरान करने वाली बात यह है कि सिविल जज ने जिन फैसलों का हवाला दिया वो सुप्रीम कोर्ट द्वारा कभी दिए ही नहीं गए। मामला उजागर होने के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट के जज ने सिविल जज के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार बेंगलुरु की सिविल कोर्ट से खारिज होने के बाद यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा तब यह संज्ञान में आया। हाईकोर्ट में इस याचिका को प्रतिवादी सम्मान कैपिटल लिमिटेड और सम्मान फिनसर्व लिमिटेड की तरफ से दाखिल किया गया है। मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और अन्य इसमें वादी हैं। याचिका के अनुसार मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड और अन्य वादियों ने सम्मान कैपिटल और सम्मान फिनसर्व के पास शेयर गिरवी रखकर लोन लिया था। समय पर लोन ना चुकाने पर कर्जदाता कंपनी की ओर से नोटिस देकर शेयर ट्रांसफर करने की बात कही गई।
इसके बाद मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर के द्वारा बेंगलुरु की कमर्शियल कोर्ट में केस दाखिल कर दिया गया और लोन देने वालों की तरफ से आगे की किसी भी प्रकार की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई। हालांकि बाद में मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर ने यहां से केस वापस ले लिया लेकिन बेंगलुरु के सिटी कोर्ट में आवेदन दाखिल कर दिया। बेंगलुरु के 9वें एडिशनल सिटी सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों जालान ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम मिलेनियम टेलिकॉम लिमिटेड तथा क्वालरनर सीमेंटेशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम अचिल बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। जबकि ये दोनों निर्णय अस्तित्व में ही नहीं हैं।