
तिरुवनंतपुरम। केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को सिंगल जज बेंच के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें केरल सरकार की ओर से जस्टिस सीएन रामचंद्रन नायर आयोग गठन को रद्द कर दिया गया था। नायर आयोग को केरल के मुनंबम में एक संपत्ति को वक्फ घोषित किए जाने के बाद बेदखली का सामना कर रहे लगभग 600 परिवारों के अधिकारों की जांच करना था। केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एस. मनु की बेंच ने सिंगल जज के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दाखिल की गई अपील पर ये आदेश दिया। इससे वक्फ विवाद में घिरे परिवारों की आस जगी है। ये परिवार लगातार न्याय के लिए धरना दे रहे हैं।
वक्फ संपत्ति का विवाद मुनंबम की 404.76 एकड़ जमीन का था। हालांकि, समुद्र के कटाव के कारण संपत्ति लगभग 135.11 एकड़ रह गई है। साल 1950 में इस जमीन को सिद्दीकी सैत नामक व्यक्ति ने फारूक कॉलेज को गिफ्ट में दी थी। इस जमीन पर पहले से ही कई परिवार रह रहे थे। इसकी वजह से फारूक कॉलेज और जमीन पर काबिज लोगों के बीच कानूनी लड़ाई हुई। इसके बाद कॉलेज ने जमीन के कुछ हिस्से इन लोगों को बेच दिए। जमीनों की बिक्री में ये नहीं बताया गया कि संपत्ति वक्फ की है। इसके बाद साल 2019 में केरल वक्फ बोर्ड ने औपचारिक रूप से जमीन को वक्फ की संपत्ति के तौर पर दर्ज कर दिया। जिससे पहले की गई बिक्री रद्द हो गई। इसके बाद जमीन पर काबिज लोगों ने राज्य वक्फ बोर्ड के फैसले को चुनौती देने वाली अपील कोझीकोड में वक्फ ट्रिब्यूनल में की।
इस बीच, लगभग 600 परिवारों के बढ़ते विरोध को देखते हुए केरल सरकार ने नवंबर 2024 में हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस सीएन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बनाया। ताकि मसले का हल निकाला जा सके। इस आयोग को केरल वक्फ संरक्षण समिति के सदस्यों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क ये था कि केरल सरकार के पास कानून के दायरे से बाहर जाकर वक्फ संपत्तियों की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। इस केस की सुनवाई के दौरान 17 मार्च 2025 को जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने आयोग के गठन के आदेश को रद्द कर दिया। इस फैसले में कहा गया कि आयोग के पास वक्फ अधिनियम 1995 के तहत पहले से ही न्यायोचित या लंबित मामलों में हस्तक्षेप करने का कानूनी अधिकार नहीं है। फिर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के इस फैसले को चुनौती देते हुए राज्य ने अपील करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं के पास अधिकार क्षेत्र का अभाव है और यह आदेश कानून और तथ्यों की उचित समझ के बिना पारित किया गया था।