नई दिल्ली। केरल में कोरोना के वायरस ने काफी हाहाकार मचाया था। अब केरल में वेस्ट नाइल वायरस से पीड़ित कई मरीज मिले हैं। केरल सरकार ने 3 जिलों में इस वायरस के प्रति अलर्ट भी जारी किया है। साल 2011 में भी केरल में वेस्ट नाइल वायरस के मरीज मिले थे। तो ये जानना जरूरी हो जाता है कि वेस्ट नाइल वायरस आखिर क्या है और इससे इंसानों को कितना खतरा है।
वेस्ट नाइल वायरस 1937 में युगांडा के वेस्ट नाइल जिले में पहली बार मिला था। इजरायल में 1950 के दौर में इसके तमाम मरीज मिले और इसे महामारी का दर्जा दिया गया। वेस्ट नाइल वायरस के खिलाफ अभी कोई वैक्सीन भी नहीं है। ये बीमारी क्यूलेक्स मच्छरों के जरिए फैलती है। ऐसे में मच्छरों से बचाव ही वेस्ट नाइल वायरस से बचने का एकमात्र तरीका है। वेस्ट नाइल वायरस के फैलने में मादा सीएक्स और पिपियंस मच्छरों की भी बड़ी भूमिका होती है। इसकी वजह ये है कि ये मच्छर वेस्ट नाइल वायरस के खास तौर पर वाहक हैं। वेस्ट नाइल वायरस चिड़ियों में होता है और जब मच्छर उनका खून चूसते हैं, तो वायरस साथ में आ जाता है। यही मच्छर जब इंसान का खून चूसते हैं, तो वेस्ट नाइल वायरस उनके शरीर में पहुंच जाता है।
वेस्ट नाइल वायरस सिर्फ मच्छरों से ही इंसान में नहीं पहुंचता। इससे ग्रसित व्यक्ति का खून दूसरे को चढ़ाने, मां के दूध से और अंग प्रत्यारोपण के जरिए भी वेस्ट नाइल वायरस एक से दूसरे व्यक्ति में पहुंच सकता है। वेस्ट नाइल वायरस से बुखार, सिरदर्द, थकान, उल्टी, शरीर पर चकत्ते होते हैं और लिम्फ नोड में सूजन आती है। इस वायरस से ग्रसित हर 10 में से 1 मरीज की मौत भी होने की आशंका रहती है। खास तौर पर बुजुर्गों के लिए वेस्ट नाइल वायरस खतरनाक होता पाया गया है।