
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है। राष्ट्रपति मुर्मु ने 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय की अपेक्षा की है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु सरकार की याचिका पर फैसला सुनाया था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को 3 महीने में विधेयकों पर फैसला लेना होगा। कोर्ट ने कहा था कि अगर इस समय सीमा में राष्ट्रपति या राज्यपाल ने बिल को मंजूरी नहीं दी या उसे वापस नहीं भेजा, तो विधेयक कानून बन जाएगा। अब आपको बताते हैं कि राष्ट्रपति ने इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को कौन से सवाल लिखकर राय मांगी है।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को भेजे ये 14 सवाल
- जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है, तो उनके पास संवैधानिक विकल्प क्या हैं?
- क्या राज्यपाल भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को पेश किए जाने पर अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद की ओर से दी गई सहायता और सलाह मानने के लिए बाध्य हैं?
- क्या संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की ओर से संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
- क्या संविधान का अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूरा प्रतिबंध लगाता है?
- संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और राज्यपाल की ओर से शक्तियों के प्रयोग के तरीके के न होने पर क्या राज्यपाल की तरफ से संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमाएं लगाई जा सकती हैं और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?
- क्या संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की ओर से संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?
- संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और राष्ट्रपति के शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की तरफ से विवेक के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमा लगाई और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?
- राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक योजना के प्रकाश में क्या राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने और राज्यपाल की तरफ से राष्ट्रपति की सहमति या अन्यथा के लिए विधेयक को सुरक्षित रखने पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने की जरूरत है?
- क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसले कानून के लागू होने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या अदालतों के लिए किसी विधेयक की सामग्री पर किसी भी तरह से कानून बनने से पहले न्यायिक निर्णय लेना अनुमेय है?
- क्या संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग और राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी तरीके से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
- क्या राज्य विधानमंडल का बनाया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी के बिना लागू कानून है?
- संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के आलोक में क्या माननीय कोर्ट की किसी भी पीठ के लिए ये जरूरी नहीं है कि वो पहले ये तय करे कि उसके सामने कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं और इसे कम से कम 5 जजों की पीठ को भेजे?
- क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या संविधान का अनुच्छेद 142 ऐसे निर्देश जारी करने या आदेश पारित करने तक विस्तारित है, जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं?
- क्या संविधान अनुच्छेद 131 के तहत वाद के माध्यम को छोड़कर संघीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के किसी अन्य क्षेत्राधिकार पर रोक लगाता है?
आखिर राष्ट्रपति ने राय क्यों मांगी?
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति ने राय इसलिए मांगी, क्योंकि पुनर्विचार याचिका फिर उसी बेंच के पास ही जाती, जिसने विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय की थी। केंद्र सरकार को लग रहा था कि संबंधित बेंच के पास पुनर्विचार याचिका देने की जगह राष्ट्रपति अगर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगेंगीं, तो अन्य और बड़ी बेंच इस पर विचार करेगी और इससे पहले के फैसले के रद्द होने की संभावना बन जाएगी। इस मामले ने बड़ा राजनीतिक तूल भी लिया था। यहां तक कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के कदम पर सवाल भी खड़ा किया था।