
जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कम से कम तीन मामलों में बिना फैसला लिखे आरोपियों को बरी करने वाले सिविल जज महेंद्र सिंह तारान की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने कहा कि जज को इस गंभीर कदाचार के लिए माफी नहीं मिल सकती। सिविल जज वर्ग-2 महेंद्र सिंह ताराम ने सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दाखिल की थी।
बर्खास्त जज महेंद्र सिंह ताराम की अर्जी पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने पर पाया कि याचिका करने वाले के खिलाफ सभी 5 आरोप साबित हुए हैं। ये गंभीर कदाचार का मामला है। जज ने आपराधिक मुकदमों में बिना फैसला लिखे ही आरोपियों को बरी कर दिया। ये सेवा प्रकृति का है। जज महेंद्र सिंह ताराम साल 2003 में पद पर आए थे। उनको साल 2016 में बर्खास्त किया गया था। जिसके बाद उन्होंने अभ्यावेदन दिया और फिर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया। साल 2012 में औचक निरीक्षण के दौरान जानकारी मिली कि ताराम ने अंतिम फैसला लिखे बिना 3 आपराधिक मामलों में आरोपियों को बरी किया था। साथ ही 2 अन्य आपराधिक मामलों में आदेश पत्र तैयार न कर ही उनको स्थगित कर दिया था।
इस पर जांच बैठी और जांच अधिकारी ने सभी 5 आरोप सही पाए। फिर पूर्ण कोर्ट ने जज पद से महेंद्र सिंह ताराम को हटाने का फैसला किया। ताराम ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका में तर्क दिया कि कार्यभार के दबाव के साथ व्यक्तिगत कठिनाइयां थीं। ऐसे में उनकी गलती नेकनीयती थी, क्योंकि वो कर्तव्यों का पालन कर रहे थे। बर्खास्त होने वाले जज ने मुख्य दलील ये भी दी थी कि इसी तरह के आरोपों का सामना करने वाले एक अन्य जज की दो वेतन वृद्धि रोककर कम सजा दी गई। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि ताराम और दूसरे जज के खिलाफ आरोप समान स्तर के नहीं पाए गए। दूसरे जज के खिलाफ आरोप था कि उन्होंने कुछ सिविल मामलों में बिना लिखित फैसले के उनको तय कर दिया था। आरोप ये भी था कि कुछ सिविल मामलों में फैसला सुनाया, लेकिन फाइल रिकॉर्ड रूम में जमा नहीं कराई।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की बेंच ने महेंद्र सिंह ताराम के दावे को खारिज करते हुए कहा कि दूसरे जज सिद्धार्थ शर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोप याचिका दाखिल करने वाले के आरोप से अलग हैं। इसलिए याचिका करने वाला आदेश के साथ नकारात्मक समानता का दावा नहीं कर सकता। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि की गई दोनों अनुशासनात्मक कार्यवाही अलग-अलग और समान स्तर की नहीं हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने महेंद्र सिंह ताराम के जज पद से बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। अब ताराम के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला हुआ है। हालांकि, उनके खिलाफ लगा आरोप बहुत गंभीर किस्म का है।