नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के खिलाफ देशभर में एक जंग चल रही है। हर राज्य सरकार इससे निपटने के लिए तैयारियों में जुटी हुई है। वहीं दूसरी तरफ कोरोना वायरस महामारी संकट के बीच उच्चतम न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जरूरी मामलों की सुनवाई कर रही है। इसी कड़ी में शीर्ष अदालत ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरफ से दायर याचिका पर फैसला सुनाया है। अदालत ने फैसले में कहा है कि मार्च में राज्यपाल द्वारा बहुमत परीक्षण का आदेश देना सही था।
इस मामले में फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अभिषेक मनु सिंघवी की तरफ से दिए उस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल इस तरह का आदेश नहीं दे सकते हैं।
Madhya Pradesh govt formation case: SC said, this is a 68-page judgment on powers of the Governor. “Have given a detailed judgment on Constitutional law and powers of Governor”, said Justice DY Chandrachud https://t.co/K3OcfIqYn7
— ANI (@ANI) April 13, 2020
यानी अदालत ने कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया है। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि राज्यपाल ने तब खुद कोई फैसला न लेते हुए बहुमत परीक्षण कराने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस को मध्यप्रदेश में बड़ा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एक चलती हुई विधानसभा में दो तरह के ही विकल्प बचते हैं जिसमें बहुमत परीक्षण और अविश्वास प्रस्ताव ही होता है। अदालत ने इस दौरान राज्यपाल के अधिकारों को लेकर एक विस्तृत आदेश भी जारी किया है।
राज्य के राज्यपाल लालजी टंडन ने सियासी उठापटक के बीच विधानसभा में बहुमत परीक्षण का आदेश दिया था। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के सियासी संकट में राज्यपाल की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रही थी और उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए थे।