newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Mahadevi Verma Birth Anniversary: महादेवी वर्मा की जयंती आज, जानिए कवियित्री ने क्यों कराया राज्यपाल को एक घंटे इंतजार?

Mahadevi Verma Birth Anniversary: फर्रूखाबाद की रहने वाली महादेवी का विवाह केवल 14 वर्ष की आयु में बरेली के डॉक्टर स्वरूपनारायण वर्मा से हो गया था। ससुराल का वातावरण रास न आने के कारण वो आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गईं।

नई दिल्ली। हिंदी साहित्य की सरस्वती महादेवी वर्मा की आज जयंती है। साल 1907 में आज ही के दिन जन्मी महादेवी वर्मा ने साहित्य और समाज के उत्थान दोनों में ही बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। महादेवी को हिंदी छायावादी कविता के चार आधार स्तंभों (जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ) में शामिल किया जाता है। महादेवी वर्मा कवयित्री होने के साथ-साथ एक शिक्षाविद, समाजसेविका, संगठनकर्ता, संपादक, चित्रकार और स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाली कर्मठ और दृढ़ निश्चयी नेत्री भी थीं। इसका साक्ष्य उनकी गद्य कृति ‘शृंखला की कड़ियां’ में मिलता है, जो स्त्री-जीवन की एक दारुण गाथा है। इस कृति में विद्रोह का स्वर अपने समय से बहुत आगे का पढ़ने को मिलता है। उन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए प्रयाग महिला विद्यापीठ की भी स्थापना की। महादेवी का परिवार 1857 के संग्राम से जुड़ा था, इसलिए कह सकते हैं कि विद्रोही चेतना उन्हें विरासत में मिली थी। फर्रूखाबाद की रहने वाली महादेवी का विवाह केवल 14 वर्ष की आयु में बरेली के डॉक्टर ‘स्वरूपनारायण वर्मा’ से हो गया था। ससुराल का वातावरण रास न आने के कारण वो आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद आ गईं। उनके विषय में कहा जाता है कि वो बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गईं।

वर्ष 1935 में उन्हें उनके पहले कविता-संग्रह ‘नीरजा’ पर ‘सेकसरिया पुरस्कार’ मिला, जिसमें उन्हें सिक्कों से भरा चांदी का कटोरा दिया गया। महादेवी ने वो कटोरा आजादी के आंदोलन के लिए गांधीजी को सौंप दिया। महादेवी स्वतंत्रता आंदोलन से सीधे जुड़ी थीं और लगातार क्रांतिकारियों के संपर्क में रहतीं थीं।  कहा जाता है कि इलाहाबाद में महादेवी का घर साहित्यकारों का तीर्थ माना जाता था। तत्कालीन सभी बड़े साहित्यकारों से महादेवी के आत्मीय संबंध थे। इसके अलावा उन्हें पशु-पक्षियों और फूल-पौधों से भी काफी प्रेम था, जिसके चलते उनका घर एक तरह से चिड़ियाघर ही बन गया था। महादेवी ने कई संस्थाओं की स्थापना की थी, जिसमें इलाहाबाद के रसूलाबाद में स्थित ‘साहित्यकार संसद’ और ‘साहित्य सहकार न्यास’ भी शामिल हैं। महादेवी हर वर्ष गर्मियों के दिनों में नैनीताल जाया करती थीं, वहां के रामगढ़ में उन्होंने ‘मीरा कुटीर’ नाम से एक घर बनाया था। ये मीरा कुटीर अब महादेवी पीठ के रूप में साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न है। महादेवी लेखकीय स्वाभिमान की धनी थीं। उनके बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक बार किसी काम से वो राज्यपाल से मिलने राजभवन गईं थी। वहां उन्हें एक घंटे इंतजार करना पड़ा और उसके बाद वो वापस लौट गईं। लेकिन फिर जब महादेवी को पहला भारत-भारती पुरस्कार देने की घोषणा की गई, तब राज्यपाल उनसे मिलने इलाहाबाद आए।

उस वक्त महादेवी जी ने भी उन्हें पूरे एक घंटे इंतजार करवाया। ये पुरस्कार उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों दिया जाना था। उस दौरान उन्होंने आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की काफी आलोचना भी की थी, और प्रधानमंत्री की ओर से दिए जाने वाले रात्रिभोज में भी शामिल होने से इनकार कर दिया था। उनके लेखन की बात करें तो पद्य रचनाओं में ‘नीहार, रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, ‘दीपशिखा’, ‘प्रथम आयाम’, ‘हिमालय’, ‘अग्निरेखा’, ‘यामा’, ‘संधिनी’, ‘गीतपर्व’, ‘परिक्रमा’ और गद्य लेखों में ‘स्मृतिचित्र’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘शृंखला की कड़ियां’, ‘स्मृति की रेखाएं’, ‘पथ के साथी’, ‘क्षणदा’, ‘साहित्यकार की आस्था’ और अन्य निबंध, ‘संकल्पिता’, ‘मेरा परिवार’, ‘चिंतन के क्षण’ आदि शामिल हैं।

साहित्य की वीणापाणि को ‘सेकसरिया पुरस्कार’ (1935), ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ (1943), ‘साहित्य अकादेमी की संस्थापक सदस्य’ (1954), प’द्मभूषण सम्मान’ (1956), उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘भारत-भारती सम्मान’ (1982),  ‘ज्ञानपीठ सम्मान’ (1983) आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा का निधन हो गया।