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PSM100: प्रमुख स्वामी महाराज के कर कमलों से 58 नवयुवाओं ने त्यागाश्रम में दीक्षा ग्रहण की

PSM100: आज कई युवा प्रमुखस्वामी महाराज और महंतस्वामी महाराज की दिव्यता और गुणों से आकर्षित होकर त्यागाश्रम में शामिल होने के लिए तैयार हैं क्योंकि वे उनकी उपस्थिति में परम शांति का अनुभव कर रहे हैं। प्रमुख स्वामी महाराज के जीवनकाल में लगभग 1000 युवा जिसमें 10 डॉक्टर, 12 एमबीए, 70 मास्टर डिग्री, 200 इंजीनियर और कुल संतों में से 70% से अधिक स्नातक हैं। आज 55 संत इंग्लैंड के नागरिक हैं और 70 संत अमेरिका के नागरिक हैं।

आज प्रमुखस्वामी महाराज नगर में परम पूज्य महंत स्वामी महाराज की पावन निश्रा में सुबह 9 बजे भागवती दीक्षा समारोह का शुभारम्भ हुआ।
BAPS के वरिष्ठ संतों की उपस्थिति में स्वामिनारायण महामंत्र के गान के साथ दीक्षा से पूर्व, दीक्षार्थी और उनके अभिभावकों ने महापूजा विधि में भाग में लिया। संतों की पावन वाणी से गुंजायमान महापूजा से वातावरण में दिव्यता व्याप्त हो गई। महापूजा के बाद वरिष्ठ संतों ने प्रासंगिक उद्बोधन का लाभ दिया। दीक्षा समारोह के दूसरे भाग में, परम पूज्य महंतस्वामी महाराज की उपस्थिति में एक और वैदिक विधि संपन्न हुई और सभी नए दीक्षितों के दीक्षा नाम की घोषणा की गई।

BAPS के वरिष्ठ संत पूज्य आनंदस्वरूप स्वामी ने कहा, साधु परंपरा में आज कई लोगों ने प्रमुखस्वामी महाराज और महंतस्वामी महाराज की आंखों में पूर्ण शांति, निर्मलता और वैराग्य का अनुभव किया है। वर्ष 2001 में अब्दुल कलाम साहब, प्रमुखस्वामी महाराज से मिले, तो वे बहुत अभिभूत हुए और अपनी पुस्तक ट्रान्सेंडेंस में उन्होंने कहा, “प्रमुखस्वामीजी से दिव्यता का एक सागर बहता है।” आज कई युवा प्रमुखस्वामी महाराज और महंतस्वामी महाराज की दिव्यता और गुणों से आकर्षित होकर त्यागाश्रम में शामिल होने के लिए तैयार हैं क्योंकि वे उनकी उपस्थिति में परम शांति का अनुभव कर रहे हैं। प्रमुख स्वामी महाराज के जीवनकाल में लगभग 1000 युवा जिसमें 10 डॉक्टर, 12 एमबीए, 70 मास्टर डिग्री, 200 इंजीनियर और कुल संतों में से 70% से अधिक स्नातक हैं। आज 55 संत इंग्लैंड के नागरिक हैं और 70 संत अमेरिका के नागरिक हैं।

BAPS के वरिष्ठ संत पूज्य डॉक्टर स्वामी जी ने कहा, भगवान स्वामिनारायण ने वचनामृत में कहा है कि, ‘भगवान को भजने से बढ़कर दूसरी कोई बात नहीं है’ और आज ये युवा सभी लोगों को भगवान का भजन करवाने की राह पर चल पड़े हैं। ‘त्याग का मार्ग, सर्वश्रेष्ठ मार्ग है’।अपने जीवनकाल में भगवान स्वामिनारायण ने लगभग 3000 धर्मनियम युक्त परमहंसों को दीक्षा दी और आज सभी उसी परंपरा के अनुरूप दीक्षा ले रहे हैं। आज इस संस्था के अधिकांश संत प्रमुख स्वामी महाराज और महंत स्वामी महाराज द्वारा तैयार किए गए जो त्यागी और तपस्वी संतों होने के साथ ही एक महीने में 5 निर्जल उपवास कर रहे हैं।

दीक्षा समारोह के बाद सब पर आशीर्वाद बरसाते हुए परम पूज्य महंतस्वामी महाराज ने कहा, इन सभी दीक्षित साधुओं को धन्यवाद है क्योंकि संसार से नाता तोड़कर भगवान से जोड़ना बहुत ही बड़ी बात है लेकिन फिर भी उन्होंने कर दिखाया। नव दीक्षित साधुओं को संबोधित करते हुए स्वामीश्री ने कहा कि, आपके माता-पिता को भी बहुत-बहुत धन्यवाद क्योंकि उन्होंने आज अपना हृदय दे दिया।आज आप सभी हमारी सेना में शामिल हो गए हैं, इसलिए धर्म नियमों का पालन करें।

नव दीक्षित संतों और उनके माता-पिता और परिवारजनों के उद्गार:

“…स्वामीश्री का प्रेम प्राप्त करने में एक शांति और आनंद है जिसे कोई भी धनराशि से नहीं खरीद सकते हैं।” –पूज्य दधीचि भगत

“… आज का अमूल्य अवसर है, जो सांसारिक डिग्री से बेहतर है और प्रमुखस्वामी महाराज शताब्दी महोत्सव के अद्भुत अवसर पर दीक्षा प्राप्त करना भी एक स्मृति है। जब हमें दीक्षा दी जाती है तो हमारा पुनर्जन्म होता है।”- पूज्य गालव भगत

“प्रमुखस्वामी महाराज के जीवन से साधु बनने की प्रेरणा मिली। बचपन से ही बहुत स्वामीश्री का लाभ मिला है। मैंने बचपन से ही स्वामी बापा का प्रेम देखा है। बापा का साथ जीवन के हर पल में मौजूद रहा है। स्वामी बापा ने बहुत प्रेम किया है। इतना प्रेम बरसाया है की उनके लिए क्या नहीं कर सकते?”- पूज्य पाणिनि भगत

प्रमुखस्वामी महाराज और महंतस्वामी महाराज का प्रेम और उन्होंने इस समाज, देश और हम सबके लिए कितना कुछ किया है ! यह शताब्दी महोत्सव प्रमुखस्वामी महाराज के अनंत उपकारों का ऋण को चुकाने का एक अनमोल अवसर है। इस शताब्दी महोत्सव में हमें दीक्षा मिली है तो यह जीवन भर की एक बहुत ही अनमोल स्मृति होगी।”-पूज्य प्रभाकर भगत

अमेरिकन आर्मी में सेवारत शेनिका शाह जो दधीचि भगत की पूर्वाश्रम की बहन है, उन्होंने बताया कि मेरा भाई साधु बन रहा है, यह हमारे परिवार के लिए गौरव की बात है। अमेरिका में जन्म हुआ है फिर भी वह अत्यंत संस्कारी है। यह प्रमुखस्वामी महाराज तथा महंतस्वामी महाराज की कृपा है।

अमेरिका निवासी जयश्रीबेन पटेल (पूज्य पाणिनि भगत के पूर्वाश्रम की माता) ने कहा, “जब मेरे पुत्र ने साधु बनने का संकल्प हमारे सामने रखा तो बड़े ही सौभाग्य की अनुभूति हुई। यह स्वामीश्री की कृपा है कि कोई इस मार्ग को अपनाता है। हम स्वामीश्री को उनकी शताब्दी में और क्या दे सकते हैं, लेकिन यह सेवा उनकी कृपा से हुई है, इसलिए हमें बहुत गर्व महसूस होता है कि हमें ऐसी सेवा करने का अवसर मिला। राजकोट निवासी वल्लभभाई जो स्वस्तिक भगत के पूर्वाश्रम के पिता है उन्होंने बताया कि हमने पुत्र को भगवान और महंतस्वामी महाराज जैसे समर्थ संत के चरणों में सौंपा है, अत: किसी बात की चिंता नहीं है। पुत्र भी प्रसन्न है, हम भी प्रसन्न हैं।

बीएपीएस का संत तालीम केंद्र

अहमदाबाद से 150 किलोमीटर दूर बोटाद जिले का सारंगपुर गांव बीएपीएस संस्था का मुख्य धाम है। नव दीक्षित संतों के प्रशिक्षण के लिए एक संत तालीम केंद्र है। गुरु शास्त्रीजी महाराज की विशेष कर्मभूमि सारंगपुर को प्रमुखस्वामी महाराज ने चुना और इसे संतों की साधना-शिक्षण का मुख्य स्थान बनाया। उन्होंने यहां दुनिया भर से आए युवकों को साधु बनने के लिए प्रशिक्षित करने की सारी व्यवस्था की। 1980 में प्रमुखस्वामी महाराज ने भोजन और आवास के अलावा धर्म, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति, तपस्या, सेवा और समर्पण में प्रशिक्षण कक्षाओं के माध्यम से नव दीक्षित संतों को शाश्वत जीवन मूल्यों का पाठ प्रदान करते हुए ब्रह्मविद्या का अनुपम महाविद्यालय स्थापित किया।

सर्वप्रथम, मुमुक्षु युवक माता-पिता की लिखित अनुमति लेकर सारंगपुर आता है। यहां तीन वर्ष के कठिन साधक तालीम में, मुमुक्षु के समुचित सत्यापन के बाद उन्हें प्रारंभिक पार्षद दीक्षा दी जाती है। अधिकांश समय दीक्षा महोत्सव आसपास के उत्सव या महोत्सव में आयोजित किया जाता है। सफेद वस्त्र धारण करने वाले इन पार्षदों को तपस्वी के सभी नियमों का पालन करना होता है। लगभग एक वर्ष के अंतराल के बाद पार्षद को भागवती दीक्षा दी जाती है। भगवा वस्त्र में सजे ये संत सारंगपुर में शास्त्रों और संस्कृत का गहन अध्ययन करते हैं। हिंदी और अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न धर्मों का अध्ययन भी यहां प्रशिक्षण का एक हिस्सा है। साथ ही, स्वामीश्री ने शिक्षा के साथ-साथ आत्मनिर्भरता को भी समान महत्व दिया। उन्होंने कहा कि सेवा से विनम्रता आएगी। ज्ञान तो विनम्र विद्यार्थी में ही रहता है।

स्वामीश्री ने इन सभी अध्ययनों और सेवा गतिविधियों को भक्ति के साथ जोड़ दिया। हां, भगवान उनके तालीम के केंद्र में थे। इसलिए उन्होंने भक्तिमय आह्निक को कभी भी गौण नहीं होने दिया। प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन से यह शिक्षा प्राप्त कर, संतों ने धर्म, संस्कृति, समाज और राष्ट्र सेवा की भावना को आत्मसात कर, गांव-गांव विचरण कर और लोगों के मन में श्रद्धा जगाकर उन्हें व्यसनों से दूर रहने की प्रेरणा दे रहे हैं।