
नई दिल्ली। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर द्वारा दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ दायर मानहानि मामले में सुनवाई करते हुए आज साकेत कोर्ट ने पाटकर के नए गवाह को पेश करने के अनुरोध को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि केस से जुड़े सभी सूचीबद्ध गवाहों की जांच की जा चुकी है, इसके साथ ही कोर्ट ने एक नए गवाह के अचानक पेश होने की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। जज राघव शर्मा ने कहा कि यह आवेदन मुकदमे में देरी करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।
Delhi Court rejected Medha Patkar’s request to introduce a new witness in her 24-year-old defamation case against LG VK Saxena, calling it a delay tactic. The court noted all listed witnesses had been examined and questioned the credibility of the sudden appearance of a new… pic.twitter.com/yDqSIkqKig
— IANS (@ians_india) March 18, 2025
जज ने यह भी कहा कि अगर पक्षकारों को केस के इतने सालों बाद इतनी देर से मनमाने ढंग से नए गवाह पेश करने की अनुमति दी जाए तो मुकदमे कभी खत्म ही नहीं होंगे, क्योंकि वादी जब चाहें तब नए गवाह पेश कर सकते हैं। इससे केस की कार्यवाही लंबी खिंचती रहेगी। अदालत ने कहा कि ऐसा मामला जो पहले से ही दो दशकों से लंबित है उसे और लंबा नहीं खींचा जा सकता। आपको बता दें कि यह केस 24 साल से लंबित है। साल 2000 में मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना ने खिलाफ यह मानहानि का केस दर्ज कराया था। उस वक्त सक्सेना अहमदाबाद स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे। पाटकर का आरोप था कि वीके सक्सेना ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित कराए जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा।
उधर, वीके सक्सेना ने भी मेधा पाटकर के खिलाफ 25 नवंबर, 2000 को मानहानि का मुकदमा दायर कराया था। इसमें सक्सेना ने आरोप लगाया था कि एक कार्यक्रम के दौरान मेधा पाटकर ने ‘देशभक्त का असली चेहरा’ शीर्षक वाला प्रेस नोट वितरित किया जिसमें यह कहा गया था कि वीके सक्सेना देशभक्त नहीं हैं बल्कि उन्हें कायर बताया गया था। इस मामले में मेधा पाटकर को पिछले साल कोर्ट ने 5 महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि बाद में सजा को निलंबित कर पाटकर को जमानत दे दी गई थी।