
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली कैबिनेट ने बुधवार को वन नेशन, वन इलेक्शन के ऐतिहासिक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस महत्वपूर्ण निर्णय को लेकर दोपहर 3 बजे ब्रीफिंग की जाएगी, जिसमें बैठक में लिए गए फैसलों पर विस्तृत जानकारी दी जाएगी। यह कदम देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में बढ़ाया गया है, जिससे चुनाव प्रक्रिया में बड़े बदलाव की संभावना है।
62 राजनीतिक दलों से समिति का संपर्क
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर 62 राजनीतिक दलों से संपर्क साधा था। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 47 दलों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है, जिनमें से 32 राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। वहीं, 15 दलों ने इस विचार का विरोध जताया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 15 राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे स्पष्ट होता है कि देश में राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर विभाजन है।
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— India TV (@indiatvnews) September 18, 2024
एक साथ चुनाव कराने के फायदे
चुनावी खर्च में भारी कटौती: वर्तमान में बार-बार चुनाव कराने पर सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से इसमें बड़ी बचत हो सकती है, जिससे सरकारी संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा।
बार-बार चुनाव की प्रक्रिया से मुक्ति: बार-बार चुनाव कराने से न केवल सरकार बल्कि जनता को भी बार-बार चुनावी प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से देश को बार-बार चुनावों की प्रक्रिया से निजात मिलेगी।
विकास पर ध्यान केंद्रित होगा: वर्तमान में चुनावी प्रक्रिया के दौरान सरकार का ध्यान विकास कार्यों से हटकर चुनावों पर केंद्रित हो जाता है। लेकिन एक साथ चुनाव होने पर सरकारें पांच साल तक बिना किसी चुनावी व्यवधान के अपने विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
आचार संहिता का प्रभाव: हर चुनाव के साथ लागू होने वाली आचार संहिता के कारण सरकारी नीतियों और योजनाओं पर प्रभाव पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से बार-बार आचार संहिता लागू नहीं होगी और सरकारी योजनाएं निर्बाध रूप से चलती रहेंगी।
काले धन पर रोक: चुनाव के दौरान काले धन के उपयोग की संभावना अधिक रहती है। एक साथ चुनाव कराने से इस पर भी रोक लगाई जा सकेगी, जिससे चुनाव प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष हो सकेगी।
क्या हैं चुनौतियाँ?
हालांकि, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार के साथ कई फायदे जुड़े हुए हैं, लेकिन इसे लागू करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती संविधान संशोधन की है, क्योंकि इसके लिए देश के कानूनों में बड़े बदलाव करने की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा, राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ कराना और चुनाव आयोग की भूमिका को और भी मजबूत करना महत्वपूर्ण होगा।