नई दिल्ली। पीएम मोदी की चुप्पी को लेकर इन दिनों सवाल उठाए जा रहे हैं। सवाल उठाने वाले पीएम की चुप्पी को उनकी कमजोरी से जोड़ रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इसकी तुलना सदा मौन मनमोहन सिंह से कर रहे हैं। ऐसे लोगों में अच्छी खासी तादाद उन लोगों की है जो पीएम मोदी के कड़े फैसलों पर हमेशा से कोहराम मचाते आए हैं। मोदी को जानने वाले इस बात को जानते हैं कि उनकी चुप्पी बहुत गहराई लिए होती है। मोदी अगर चुप हैं तो समझिए कुछ बड़ा होने वाला है। संकेत भी इसी बात के मिल रहे हैं।
नरेंद्र मोदी की चुप्पी इससे पहले भी कई बार राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर भूकंप का कारण बनी है। साल 2019 में पुलवामा अटैक की घटना के बाद देश उबल रहा था। सरकार से लगातार सवाल पूछे जा रहे थे। जिम्मेदारी तय की जा रही थी, पर मोदी खामोश थे। उन्हें जानने वाले तब भी ये समझते थे कि मोदी किसी बड़े मिशन पर हैं। वही हुआ भी, 14 फरवरी को पुलवामा हुआ। 26 फरवरी को बालाकोट में सारा कुछ सूद समेत वापिस कर दिया गया। इस बीच 12 दिन गुजर गए। मोदी चुपचाप अपने अभियान में जुटे रहे। वैक्सीन का मामला भी इसी तर्ज पर था।
राहुल गांधी से लेकर पूरा विपक्ष अमेरिका की फाइजर वैक्सीन समेत कुछ खास वैक्सीनों के आयात के लिए मोदी पर दबाव बना रहा था। मगर मोदी चुपचाप अपना काम करते रहे। उनका मिशन असरदार घरेलू वैक्सीनों का समय से उत्पादन सुनिश्चित करना था। कुछ ही समय में कोवीशील्ड और कोवैक्सीन बनकर तैयार हो गई। 3 जनवरी को पीएम का एक ट्वीट आया और दुनिया दंग रह गई। मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा- “यह गर्व की बात है कि जिन दो वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है, वे दोनों मेड इन इंडिया हैं। यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने के लिए हमारे वैज्ञानिक समुदाय की इच्छाशक्ति को दर्शाता है। वह आत्मनिर्भर भारत, जिसका आधार है- सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया।” देखते ही देखते दुनिया भारत की वैक्सीनों की मुरीद हो गई। अब विपक्ष ने इन वैक्सीनों की गुणवत्ता को लेकर लोगों को गुमराह करने का अभियान शुरू कर दिया।
हाल ही में बंगाल के चुनाव में बीजेपी हारी है जिसके बाद पीएम मोदी पर हमलों का सिलसिला और भी तेज हो गया है। जिनकी राजनीतिक याददाश्त थोड़ी भी मजबूत होगी उन्हें साल 2015 के बिहार चुनाव याद होंगे। साल 2014 में मोदी की आंधी आई थी। इस आंधी में बड़े-बड़े किले उड़ गए। इसके बावजूद साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी बुरी तरह हारी। लालू और नितीश के महागठबंधन को दो तिहाई बहुमत मिला। राजनीतिक पंडितों ने चीखना शुरू कर दिया कि मोदी का जादू खत्म। मगर बिहार चुनाव की हार से मोदी न तो हताश हुए, न निराश। 8 नवंबर को ये नतीजे आए। नवंबर में मोदी को यूके जाना था। ब्रिटिश मीडिया ने बिहार की हार का मतलब मोदी के चमत्कार के खात्मे तक से जोड़ दिया। मोदी चुपचाप अपने शेड्यूल के मुताबिक लंदन गए। विदेशी संबंधों का निर्वहन किया। देश लौटे और फिर से काम में जुट गए।
2016 में मोदी ने पार्टी को वो असम जितावाया, जो बीजेपी कभी सोच भी नहीं सकती थी। 2017 में देश का सबसे महत्वपूर्ण सूबा यूपी बीजेपी के हाथ आ गया। इसी साल बिहार में भी बाजी पलट गई और नीतीश बीजेपी के साथ आ गए। सरकार एनडीए की फिर से बन गई। 2018 में फिर मोदी ने चमत्कार किया और त्रिपुरा जैसे वामपंथ के गढ़ में बीजेपी ने जीत का झंडा फहरा दिया। ये सब वो मोदी कर रहे थे जिन्हें बिहार की चुनावी हार के बाद चुका हुआ मान लिया गया था। साल 2019 में पहले से ज्यादा बहुमत से लोकसभा जीती और साल 2020 में एक बार फिर से बिहार अपने नाम कर लिया, वो भी बढ़ी हुई सीटों के साथ। बंगाल चुनावों के बाद भी मोदी चुप हैं। उनकी चुप्पी इशारा कर रही है कि वे किसी बड़े अभियान में जुटे हैं। नतीजा कभी भी चौंका सकता है।