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नीति आयोग की रिपोर्ट: फिर फहराया बिहार ने गरीबी का पताका, बना देश का सबसे गरीब राज्य, नीतीश कुमार बोले- मुझे इसकी जानकारी नहीं..!

NITI Aayog : सोचकर ही हैरानी होती है कि नीति आयोग की रिपोर्ट जारी की जा चुकी है। एक बार फिर बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों की फेहरिस्त में शुमार हो चुका है। एक बार फिर बिहार और बिहारियों के माथे पर निर्धनता का सेहरा बंध चुका है।

नई दिल्ली। जब किसी अबोध बालक की किलकारियां किसी आंगन में सुनाई देती है, तो उसे उस वक्त तो पता नहीं होता कि उसका जन्म कहां हुआ है, लेकिन जब अपने शहर के किसी स्कूल और कॉलेज से अपनी शिक्षा मुकम्मल करने के बाद जीविकोपार्जन हेतु वो देश के महानगरों की फेहरिस्त में शुमार दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों की ओर रुख करता है, तब उसे यह एहसास दिला दिया जाता है कि उसका जन्म तो बिहार में हुआ है। जब वह दिल्ली-मुंबई जैसे शहर के किसी नामीगिरामी कंपनी में नौकरी करता है, तो उसे यह एहसास दिला दिया जाता है कि उसका जन्म बिहार में हुआ है। जब लोगों के मजमों में शामिल होकर किसी मसले पर वाद-विवाद के दौरान वो अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है, तो उसे यह एहसास दिला दिया जाता है कि उसका जन्म बिहार में हुआ है। कभी बस में तो कभी रेल में सफर करने के दौरान उसे यह एहसास दिला दिया जाता है कि उसका जन्म तो बिहार में हुआ है। और बिहार और बिहारियत का एहसास दिलाने वाले कोई नहीं, बल्कि  देश की संप्रभुता पर ज्ञान देने वाले लोग ही होते हैं। खैर, अब ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या बिहार में जन्म लेना जुर्म है क्या? आखिर क्यों अमूमन दिल्ली मुंबई जैसे बिहार या देश के किसी छोटे शहरों के लोगों को हिकारत भरी निगाहों से देखा जाता है।

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आखिर क्यों उन्हें कई मामलों में बिना सोचे  समझे ही हम अपने भूतपूर्व पुर्वाग्रहों के आधार पर कमतर आंक लेते हैं। आखिर क्यों…? आखिर क्यों…? आखिर किसने बनाया बिहार जैसे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक राज्य को बौना? आखिर किसने उसे आर्थिक मोर्चे पर पीछे छोड़ दिया? आखिर क्यों आजादी के सात दशकों के बाद भी जब देश के तमाम सूबे सफलता की नई इबारतें लिखने में मशगूल हैं, तो बिहार पीछे छूट रहा है। आखिर क्यों नहीं अन्य राज्यों की भांति बिहार विकास के पथ  पर चल पाया है। आखिर क्यों आज भी देश के सबसे गरीब राज्यों की फेहरिस्तमें सबसे अव्वल दर्जे पर बरकरार है बिहार? आखिर कौन है, इसका जिम्मेदार? हम, आप  या बिहार की जनता या वहां के राजनीतिक दल।

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अभी हाल ही में नीति आयोग ने निर्धनता के संदर्भ में एक सूची जारी की है। जिसमें बताया गया है कि किस राज्य में गरीबी की क्या स्थिति है। यह जानकर हैरत होती है कि आजादी के सात दशकों के बाद भी नीति आयोग की रिपोर्ट से यह साफ जाहिर होता है कि आज भी गरीबी के मामले में बिहार अव्वल दर्जे पर कायम है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, आज भी बिहार की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 52 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। वहीं नीति आयोग की रिपोर्ट जारी होने के बाद से बिहार के सियासी गलियारों में कोहराम मच गया है। यह कोहराम लाजिमी भी है। सूबे के मुखिया नितीश कुमार उर्फ सुशासन बाबू से तीखे सवाल किए जा रहे हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तो उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजद के अलावा अन्य दलों ने भी नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं नीतीश कुमार मुंह छुपाते फिर रहे हैं। मीडियाकर्मियों के सुलगते सवालों से सुशासन बाबू औंधे मुंह गिर गए। नीति आयोग की रिपोर्ट के संदर्भ में मीडियाकर्मियों ने उनसे सवाल किया, तो सुशासन बाबू कन्नी काट गए। कहने लगे कि मुझे किसी रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं पता है। मैं मुझे इसकी जानकारी अभी तक नहीं है।

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सोचकर ही हैरानी होती है कि नीति आयोग की रिपोर्ट जारी की जा चुकी है। एक बार फिर बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों की फेहरिस्त में शुमार हो चुका है। एक बार फिर बिहार और बिहारियों के माथे पर निर्धनता का सेहरा बंध चुका है। देश-प्रदेश की राजनीति में इसे लेकर बहस का सिलसिला शुरू हो चुका है और नीतिश कुमार कह रहे हैं कि मुझे इस रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सुशासन बाबू अगर आपको रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं, तो  लालू यादव ने आपको किस संदर्भ में यह हिदायत दी कि आपको चुल्ली भर पानी में कूदकर मरने की हिदायत दे डाली। बता दें कि लालू प्रसाद यादव का यह बयान अभी हाल ही में नीति आयोग के रिपोर्ट के के संदर्भ में आया है, जिसमें गरीबी के मामले में बिहार के शीर्ष पर होने पर कहा कि नीतिश कुमार को चुल्ली भर पानी में कूदकर मर जाना चाहिए।

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अजी छोड़िए जनाब…! क्यों पड़े हैं बिहार और बिहारियों के पीछे। बात उत्तर प्रदेश की ही कर लेते हैं। वहीं उत्तर प्रदेश जहां योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में विकास की बयार बहाने की बातें कही जाती है। जहां समाज के हर वर्ग के सर्वांगीन विकास की तकरीरें पेश की जाती है।  जानकर आपको हैरानी होनी चाहिए कि नीति आयोग की रिपोर्ट में यूपी का भी नाम दर्ज है। यहां भी गरीबी का दबदबा है, लेकिन हर चुनावी रैलियों में सपा बसपा पर हमले बाले सीएम योगी आदित्यनाथ के मुख से अभी तक इसके संदर्भ में एक शब्द भी सुनने को नहीं मिले हैं। यहीं हाल झारंखड और मध्य प्रदेश के राज्यों का भी है। यह भी गरीबी के दौड़ में आगे निकल रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी  सभी बीजेपी या उनके सहयोगी दलों की सरकार है।

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ऐसी स्थिति में केंद्र  या जिन राज्यों का नाम रिपोर्ट में दर्ज है, वहां की सरकार की तरफ से कोई न कोई प्रतिक्रिया तो बनती ही है, लेकिन हैरानी होती है यह जानकर कि अभी तक कोई भी प्रतिक्रिया सरकार की तरफ से सामने नहीं आई है और इन राज्यों की जनता का गरीबी की चक्की में पिसने का सिलसिला है। बेशक, चुनावी मौसम में सरकार प्रदेश विकास की बयार बहने की बात कहते हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। मुनासिब रहेगा कि हम अभी-भी संजीदगी बरतते हुए सतर्क हो जाए अन्यथा हमें और हमारे आने वाले बच्चों को ऐसे  ऐसे दौर से गुजरना पड़ सकता है जिसकी परिकल्पना कर हमारी रूह कांप जाती है।