नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज एक केस की सुनवाई के दौरान बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि मेडिकल एंट्रेस में 40 फीसदी दिव्यांगता का बेंचमार्च तय होने से कोई योग्य विद्यार्थी एडमीशन के लिए अयोग्य नहीं हो जाता। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश एक मेडिकल स्टूडेंट ओमकार की याचिका पर सुनाया। ओमकार को 40 फीसदी से ज्यादा दिव्यांग होने के चलते एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश से रोक दिया गया था। फिलहाल नेशनल मेडिकल काउंसिल के मौजूदा नियमों के मुताबिक अगर कोई अभ्यर्थी 40 प्रतिशत से ज्यादा दिव्यांग है तो उसे एमबीबीए कोर्स में एडमिशन नहीं मिल सकता है। ओमकार ने नेशनल मेडिकल काउंसिल के इसी नियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगता से पीड़ित अभ्यर्थी की एमबीबीएस कोर्स करने की क्षमता की जांच दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड से कराने की सिफारिश की।
#BREAKING| Mere Existence Of Benchmark Disability Won’t Disqualify Candidate From MBBS Course : Supreme Court#MBBS #SupremeCourt https://t.co/p9oqJ3IJ0F
— Live Law (@LiveLawIndia) October 15, 2024
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस के. वी. विश्वनाथन और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी दिव्यांग स्टूडेंट को मेडिकल की पढ़ाई में एंट्रेंस से सिर्फ उस कंडीशन में रोका जा सकता है अगर दिव्यांगता मूल्यांकन बोर्ड इस नतीजे पर पहुंचता है कि दिव्यांग होने की वजह से वह स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने कहा, केवल इसलिए कि बोलचाल और भाषा के लिए विकलांगता की सीमा 40 फीसदी या उससे अधिक तय है, एक उम्मीदवार प्रवेश के लिए दावा करने का अपना अधिकार नहीं खो देता है। इस तरह की व्याख्या असमान लोगों के साथ समान व्यवहार करने के लिए ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन रेगुलेशन को अत्यधिक व्यापक बना देगी। सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि सरकारी संस्थाओं और निजी संस्थाओं का दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि वे विकलांग उम्मीदवारों को कैसे सर्वोत्तम अवसर प्रदान कर सकते हैं। उनका दृष्टिकोण यह बिलकुल नहीं होना चाहिए कि उन्हें कैसे अयोग्य ठहराया जाए।