नई दिल्ली। कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट ने अपनी एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआइ) में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और मतांतरण के दबाव के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि संस्थान में धार्मिक आधार पर भेदभाव और गैर-मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह मौजूद है। यह रिपोर्ट 65 पेजों में तैयार की गई है, जिसमें जामिया के गैर-मुसलमान फैकल्टी सदस्य, छात्र, कर्मचारी और पूर्व छात्रों से बातचीत की गई है।
रिपोर्ट में कुल 27 लोगों की गवाही शामिल है, जिनमें सात प्रोफेसर और फैकल्टी सदस्य, आठ-नौ कर्मचारी, 10 छात्र और कुछ पूर्व छात्र शामिल हैं। रिपोर्ट को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंप दिया गया है, ताकि मामले में आगे की कार्रवाई की जा सके। रिपोर्ट तैयार करने में तीन महीने का समय लगा। इस टीम का नेतृत्व दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा ने किया, जबकि छह सदस्यीय टीम में दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे।
The fact-finding committee that inquired into “Discrimination” and “Conversion” of Non-Muslims to Islam in Jamia Millia Islamia University, Delhi has named 16 faculty members as having tried to intimidate and convert non-Muslim students.
Here’s a sample of the depositions made… pic.twitter.com/9FNus8Q2q7
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) November 15, 2024
राम निवास प्रकरण के बाद आरोपों में वृद्धि
रिपोर्ट में बताया गया कि इसी वर्ष अगस्त में जामिया मिल्लिया के कर्मचारी राम निवास के समर्थन में अनुसूचित जाति और वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था। उनका आरोप था कि गैर-मुसलमान होने के कारण जामिया में उन्हें परेशान किया जा रहा है और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त, कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट को जामिया में गैर-मुसलमानों के उत्पीड़न, मतांतरण और भेदभाव के संबंध में कई मौखिक और लिखित शिकायतें प्राप्त हुई थीं।
भेदभाव के आरोप
रिपोर्ट में एक महिला असिस्टेंट प्रोफेसर का बयान भी शामिल है, जिसमें उन्होंने कहा कि वह शुरू से ही जामिया में पूर्वाग्रह महसूस करती थीं। उनके अनुसार, मुस्लिम कर्मचारी गैर-मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। एक घटना में, पीएचडी थीसिस प्रस्तुत करते समय मुस्लिम क्लर्क ने उन्हें अपमानजनक टिप्पणियां कीं और कहा कि वह कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगी। उन्होंने यह भी बताया कि क्लर्क ने उनके थीसिस के शीर्षक को ठीक से नहीं पढ़ा, लेकिन उसकी गुणवत्ता पर टिप्पणी की।
इसके अलावा, एक अन्य गैर-मुस्लिम फैकल्टी सदस्य ने कहा कि उन्हें मुस्लिम सहयोगियों को दी जाने वाली सुविधाओं, जैसे बैठने की जगह, केबिन और फर्नीचर में भेदभाव का सामना करना पड़ा। अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले एक फैकल्टी सदस्य ने बताया कि उन्हें केबिन आवंटित किए जाने पर परीक्षा शाखा के कर्मचारियों ने कहा, “कैसे एक ‘काफिर’ को केबिन दे दिया गया।”
मतांतरण के लिए दबाव का आरोप
रिपोर्ट में एक और गंभीर आरोप सामने आया, जिसमें एक अनुसूचित जनजाति के पूर्व छात्र ने बताया कि एक शिक्षक ने कक्षा में घोषणा की थी कि जब तक वह इस्लाम का पालन नहीं करेगा, उसकी एमडी पूरी नहीं होगी। शिक्षक ने उन छात्रों का उदाहरण दिया, जिन्होंने इस्लाम अपनाने के बाद अच्छा व्यवहार और समर्थन प्राप्त किया।