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Vikram Batra: पाक आतंकियों के छक्के छुड़ाने वाले विक्रम बत्रा की है आज 23वीं पुण्यतिथि, जानें उनके अदम्य साहस की कहानी

Vikram Batra: आज उसी शेरशाह की  23वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर आज हम आपको विक्रम बत्रा के अदम्य साहस के किस्से सुनाएंगे। आज हर कोई बत्रा को नम आंखों से याद कर रहा है।

नई दिल्ली। विक्रम बत्रा…वो बहादुर जिसके नाम से ही पाकिस्तानी आतंकियों में खौफ सा जाग जाता था। आतंकी अपना रास्ता बदल लेते थे। आज उसी शेरशाह की  23वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर आज हम आपको विक्रम बत्रा के अदम्य साहस के किस्से सुनाएंगे। आज हर कोई बत्रा को नम आंखों से याद कर रहा है। बता दें कि कैप्टन विक्रम बत्रा पर फिल्म भी बनी है जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा ने विक्रम का रोल प्ले किया था। उन्होंने विक्रम को पर्दे पर ऐसे उतारा था कि देखने वाले अपने आंसू नहीं रोक पाए थे। तो चलिए विस्तार में विक्रम बत्रा के साहस की कहानी के बारे में जानते हैं।

करगिल के हीरो रहे विक्रम बत्रा

करगिल युद्ध में विजय दिलाने में विक्रम बत्रा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने दो सबसे जरूरी चोटियों को पाकिस्तानी आतंकियों के कब्जे से आजाद कराया था। प्यार से विक्रम को सभी लोग ‘शेरशाह’ और कारगिल शेर कहकर बुलाते थे और वो जिंदादिली से अपनी जिंदगी को जीते थे। वो हर परिस्थिति को संभालने के लिए हमेशा दिल मारे मोर कहते थे। जिससे बाकी सैनिकों का भी साहस बढ़ता था। उन्हें अपने अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र नवाजा भी जा चुका है। पहली बार जून 1999 को विक्रम को अपनी टुकड़ी के साथ कारगिल युद्ध में भेजा गया था। जहां 20 जून को उन्होंने सुबह साढे 3 बजे ही चोटी को अपने कब्जे में लेकर दिल मागे मोर के जरिए विजय की घोषणा की थी। जिसके बाद से ही उनका ये डायलॉग सभी के बीच फेमस हो गया था। इसी दौरान उन्हें शेरशाह कोडनेम दिया गया था।

अपनी जान देकर कब्जा की चोटी

इसके बाद चोटी 4875 को छुड़ाने की बात आई। इसकी कमान भी विक्रम को ही सौंपी गई। जहां एक घायल सूबेदार को बचाने के लिए विक्रम बंकर से बाहर आए और दुश्मनों की गोली को अपने सीने पर लिया। अपनी अंतिम सांस तक विक्रम ने भारत माता की जय के नारे लगाए और अपनी जान गंवाकर  4875 चोटी को आतंकियों से मुक्त करा लिया।