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पीएम मोदी ने शेयर किया मोढेरा के सूर्य मंदिर का ऐसा वीडियो कि लोग हुए मंत्रमुग्ध, कही ये बात

इस ट्वीट पर लोग अपने कमेंट में इसकी तारीफ भी कर रहे हैं। बता दें कि मोढेरा(Modhera) के सूर्य मंदिर(Sun Temple) का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है।

नई दिल्ली। बुधवार की सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर मोढेरा के सूर्य मंदिर का एक वीडियो शेयर किया। इस वीडियो में बारिश के बीच मंदिर देखने लायक ही बन रहा है। इस ट्वीट पर लोग अपने कमेंट में इसकी तारीफ भी कर रहे हैं। बता दें कि मोढेरा के सूर्य मंदिर का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। लोग इसे हिंदुस्तान की खूबसरती बेजोड़ उदाहरण बता रहे हैं।

Modhera Sun Temple

पीएम मोदी ने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा कि, ‘मोढ़ेरा का प्रतिष्ठित सूर्य मंदिर बारिश के दिन में शानदार दिख रहा है। आप भी देखें।’ गौरतलब है कि गुजरात के कई जिलों में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है। राज्य के कई जिलो में डैम ओवरफ्लो हो चुके हैं। हालात बिगड़ने के बाद जलाशयों के गेट खोले जा रहे हैं।

पीएम मोदी के इस ट्वीट पर एक यूजर ने लिखा कि, ’11 वीं सदी में बना भगवान शिव का ये मंदिर विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट से बना हुआ है।’

कुछ इस तरह के आए रिप्लाई

मंदिर की बात करें तो मोढेरा का अर्थ है मृत का ढेर। संभवत: अनेक सभ्यताओं की परतों से सम्बंध रखते हुए इसे मोढेरा कहा गया। एक किवदंती के अनुसार मोढेरा ग्राम, ब्राम्हणों के मोढ जाति से सम्बंधित है, जिन्होंने भगवान् राम को उनके आत्मशुद्धी यज्ञ में मदद की थी। पाटन से 30 किमी दक्षिण में मेहसाना जिले में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित इस मोढेरा सूर्य मंदिर का उत्कृष्ट एवं विश्र्व प्रसिद्ध वास्तुशिल्प बेमिसाल है। सारी संरचना एक वैज्ञानिक आधार पर तैयार है, जिस पर उत्कीर्ण नक्काशी परंपरा व धार्मिक आस्था का नायाब समन्वय है। यह मंदिर एक समय में पूजा अर्चना, नृत्य एवं संगीत से भरपूर जाग्रत मंदिर था। पाटन के सोलंकी शासक सूर्यवंशी थे एवं सूर्यदेव को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए सोलंकी राजा भीमदेव ने सन 1026 ई. में इस सूर्य मंदिर की स्थापना करवाई थी। यह दक्षिण के चोल मंदिर एवं उत्तर के चंदेल मंदिर का समकालीन वास्तुशिल्प है।

modhera Sun Temple pm modi

सूर्य मंदिर की संरचना ऐसी की गई है कि विषयों के समय, यानी 21 मार्च और 21 सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह के भीतर स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि हमारे पूर्वजों को प्राचीन काल में विज्ञान, तकनीक एवं खगोलशास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान था। माना जाता है कि यह मंदिर 23 लैटिट्यूड पर बना है। 21 मार्च व 22 सितंबर इक्विनॉक्स (विषुव) ऐसा समय-बिंदु होता है, जिसमें दिन और रात्रि लगभग बराबर होते हैं। ग्रेगोरियन वर्ष के आरंभ होते समय (जनवरी माह में) सूरज दक्षिणी गोलार्ध में होता है और वहां से उत्तरी गोलार्ध को अग्रसर होता है। वर्ष के समाप्त होने (दिसम्बर माह) तक सूरज उत्तरी गोलार्द्ध से होकर पुन: दक्षिणी गोलार्द्ध पहुंच जाता है। इस तरह से सूर्य वर्ष में दो बार भू-मध्य रेखा के ऊपर से गुजरता है। इस मंदिर के निर्माण में मूल खण्डों को आपस में गूंथ कर संरचना खड़ी की गयी है। कहा जाता है कि इस पद्धति के कारण यह भूकंप के झटकों को भी आसानी से सहन कर सकता है।