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पुणे पोर्श एक्सीडेंट कांड पूरे सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा है

मीडिया की सुर्खियां बनने के चलते पुणे पोर्श एक्सीडेंट कांड भले ही चर्चा में आ गया हो लेकिन इस कांड के नाबालिग आरोपी को बचाने के लिए जिस तरह से प्रयास किए गए और जिस तरह से सिस्टम में डॉक्टर, पुलिस सभी की मिलीभगत उजागर हुई वह पूरे सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा है

सिस्टम में रसूख के चलते करप्शन कैसे होता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है पुणे पोर्श कार एक्सीडेंट कांड, जहां एक रईस बाप के नाबालिग बेटे ने नशे की हालत में पोर्श कार से कुचलकर दो इंजीनियरों की जान ले ली, उसे गिरफ्तार किया गया लेकिन उसे बड़ी आसान शर्तों पर जमानत भी दे दी गई। इस बीच रईस बाप की नाबालिग औलाद को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए गए। डॉक्टरों से मिलीभगत कर उसके ब्लड सैंपल बदलवा दिए गए, नाबालिग की जगह किसी और को कार चालक बना दिया गया। मामले ने तूल पकड़ा परत दर परत खुली तो पता चला कि यदि आप रसूख रखते हैं तो सिस्टम को आप अपने अनुसार चला सकते हैं, बशर्ते मामले को इतना तूल न मिले। मीडिया की सुर्खियां बनने के चलते पुणे के कल्याणी नगर इलाके में हुआ पोर्श एक्सीडेंट कांड भले ही चर्चा में आ गया हो लेकिन इस कांड के आरोपी को बचाने के लिए जिस तरह से प्रयास किए गए और जिस तरह से सिस्टम में डॉक्टर, पुलिस सभी की मिलीभगत उजागर हुई वह पूरे सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा है।

जाहिर है ऐसी और भी घटनाएं होती रही होंगी, यहां सवाल उठता है कि क्या ऐसे सिस्टम के चलते पीड़ितों को न्याय मिलता रहा होगा? जिस नाबालिग ने नशे में दो इंजीनियरों को कुचल कर मार डाला, वह अभी बाल सुधार गृह में है, मामले के सुर्खियां बटोरने के बाद उसकी जमानत रद्द कर दी गई है। अब पुलिस के सामने चुनौती है कि वह ऐसे सबूत प्रस्तुत करे ताकि जुवेलाइन बोर्ड नाबालिग पर बालिग की तरह मामला चलाने की अनुमति दे दे। इसके लिए भी जिरह होगी, नाबालिग की तरफ से पैरवी करने के लिए बड़े—बड़े वकील होंगे, सब कुछ जुवेनाइल बोर्ड पर निर्भर होगा कि वह उस पर बालिग की तरह केस चलाने की अनुमति देता है या नहीं। यदि अनुमति मिलती है तभी आरोपी पर बालिग की तरह केस चलेगा। इसकी भी एक लंबी प्रक्रिया है।

इस पूरे मामले को गौर से देखने पर पूरे सिस्टम की खामियां उजागर होती हैं। सबसे पहली तो यह है कि नाबालिग सड़क पर कार लेकर निकलता है, उसके पास लाइसेंस नहीं है फिर भी उसके पिता ने उसे कार लेकर सड़क पर निकलने देता है। वह अपने दोस्तों के साथ बार में जाता है। कानूनन बार में 25 साल से कम आयु के लोगों को शराब नहीं परोसी जा सकती लेकिन उसे शराब परोसी जाती है। इसके लिए बार के मैनेजर समेत तमाम लोग दोषी हैं। जाहिर है बार में और भी नाबालिग आते रहे होंगे, उन्हें भी शराब परोसी जाती रही होगी। ऐसे में बार को सील कर उसके मैनेजर समेत तमाम लोगों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

शराब के नशे में दो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को कुचलने के बाद घटनास्थल पर सबसे पहले यरवदा पुलिस स्टेशन के दो पुलिसकर्मी वहां पहुंचते हैं लेकिन नाबालिग के परिवार के रसूख के चलते उन्होंने न तो वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना दी और न कंट्रोल रूम को कुछ बताया। घटना के बाद वडगांव शेरी के विधायक सुनील टिंगरे भी सुबह-सुबह थाने पहुंच गए। उन पर भी नाबालिग को बचाने के लिए दबाव बनाने का आरोप लगा, हालांकि बाद में बात आई गई हो गई। शुरुआत में जो मेडिकल रिपोर्ट आई उसमें नाबालिग के शराब पीकर कार चलाने की पुष्टि नहीं हुई।

बाद में जब बार के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए तो पता चला कि नाबालिग ने अपने दोस्तों के साथ शराब पी थी। सरकारी डॉक्टरों ने मिलकर उसके ब्लड सैंपल के नमूने बदल दिए गए थे। नाबालिग के पिता ने डॉक्टरों को लालच देकर उन पर दबाव बनाया था। दूसरी रिपोर्ट में नाबालिग द्वारा शराब के नशे में होने की पुष्टि हुई। ब्लड सैंपल बदलने के आरोप में सरकारी अस्पताल के दोनों डॉक्टरों को गिरफ्तार किया गया है। डॉक्टरी जैसे पेशे को बदनाम करने और अपराधी का साथ देने वाले दोनों डॉक्टरों पर कानूनी कार्रवाई होने के साथ साथ उनका मेडिकल प्रैक्टिस करने का लाइसेंस भी छीना जाना चाहिए।

नाबालिग के पिता विशाल अग्रवाल और दादा सुरेंद्र अग्रवाल ने ड्राइवर गंगाधर पर दबाव बनाया कि वह पुलिस में जाकर बयान दे कि घटना के वक्त कार वह चला रहा था और ड्राइवर ने 23 मई को पुलिस के सामने ऐसा ही बयान दिया भी। बाद में जब जांच हुई तो पता चला कि सुरेंद्र अग्रवाल और विशाल अग्रवाल ने ड्राइवर गंगाधर को धमकाया था। उसे अपने घर में कैद कर लिया था और दुर्घटना का दोष खुद पर लेने के लिए धमकी दी थी। तथ्यों की पुष्टि के बाद विशाल और उसके पिता सुरेंद्र पर आईपीसी की धारा 365 (अपहरण) और 368 (गलत मंशा से बंधक बनाकर रखने) के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने कहा कि ड्राइवर डरा हुआ था इसलिए उसने ऐसे बयान दिए।

जब इस मामले की खामियां उजागर होती हैं तो पाते हैं कि सारा सिस्टम पूरी से सड़ चुका है। पैसे और रसूख के बल पर कुछ भी किया जा सकता है। किसी को भी खरीदा जा सकता है। ऐसे में यदि इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो यह पूरे सिस्टम पर एक करारा तमाचा होगा। नाबालिग समेत इस मामले के सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर समाज के सामने एक नजीर प्रस्तुत करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई कानून को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश करने की सोच भी ना सके।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।