
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS के चीफ मोहन भागवत ने युवाओं को पढ़ाए जाने वाले इतिहास और शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत को अगर विश्वगुरु बनाना है, तो गौरवपूर्ण प्राचीन सनातन संस्कृति को फिर से स्थापित करना और सांस्कृतिक धरोहरों का प्रमाणीकरण करना होगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए शोध की जरूरत है, क्योंकि नई पीढ़ी हर बात पर सबूत मांगती है। भागवत ने कहा कि मौजूदा शिक्षा व्यवस्था आस्था को बढ़ावा नहीं देती। उन्होंने कहा कि अगर शिक्षा का तरीका बदला जाए, तो वो दुनिया को भी नई दिशा देगा।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) में ‘द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक के विमोचन के मौके पर भागवत ने ये बात कही। ये किताब सरस्वती नदी के इतिहास और प्रमाणित करते दस्तावेजों को इकट्ठा कर लिखी गई है। भागवत ने कहा कि इतिहास के तहत अब तक हमें यही बताया जाता रहा है कि हमे सबकुछ दुनिया ने दिया। हमारा अपना कुछ नहीं और हमने दुनिया की नौकरी की है। उन्होंने कहा कि दुनिया में भारत की हैसियत बनाने के लिए गौरवपूर्ण प्राचीन धरोहरों और मान्यता को लेकर धूर्तों की ओर से लगातार बोले गए झूठ को मिटाना होगा। ताकि हम गुलामी की मानसिकता से निकल सकें।
संघ प्रमुख ने कहा कि हम अपने इतिहास को ही भूल गए। उन्होंने कहा कि जिस तरह राम और रामायण के साथ राम सेतु को भी अभी की पीढ़ी मानने लगी है, ठीक उसी तरह वो सरस्वती नदी को भी एक दिन मानेगी। मोहन भागवत ने कहा कि सरस्वती नदी पर देश के बड़े वर्ग की श्रद्धा है। उन्होंने कहा कि इस नदी के तीन किलोमीटर का हिस्सा प्रमाणित हो चुका है और अब उसके उद्गम और पूरे रास्ते की तलाश करनी होगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने भी इस मौके पर इतिहास को तोड़े-मरोड़े जाने का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भ्रामक तथ्य दिए गए कि आर्य दूसरे देश से आए, लेकिन कहां से आए इसका जिक्र नहीं किया गया।