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Pranab Mukherjee On Rahul Gandhi: ‘सुबह-शाम का अंतर पता नहीं, पीएमओ कैसे चलाएंगे!’, प्रणब मुखर्जी की बेटी का दावा- पिता ने उठाया था राहुल गांधी के बारे में ये सवाल

प्रणब मुखर्जी की बेटी और कभी कांग्रेस में रहीं शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता पर एक किताब ‘प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स’ लिखी है। इस किताब में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता से हुई बातों और उनकी डायरी के हिस्सों की जानकारी दी है। इसमें प्रणब के राहुल गांधी के बारे में भी एक जगह विचार है।

नई दिल्ली। प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति रहे। वो कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। प्रणब मुखर्जी के बारे में हमेशा चर्चा रही कि सोनिया गांधी ने उनको पीएम नहीं बनने दिया और राहुल गांधी की राह में कांटा मानती रहीं। प्रणब मुखर्जी को जब सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, तो ये चर्चा भी रही कि राहुल गांधी की सियासत का कांटा दूर करने के लिए ये फैसला किया गया। अब प्रणब मुखर्जी की बेटी और कभी कांग्रेस में रहीं शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता पर एक किताब ‘प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स’ लिखी है। इस किताब में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता से हुई बातों और उनकी डायरी के हिस्सों की जानकारी दी है। इसी किताब में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने एक ऐसा किस्सा भी बयां किया है, जब प्रणब मुखर्जी ने राहुल गांधी और उनके दफ्तर पर सवाल खड़े किए थे।

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शर्मिष्ठा मुखर्जी के मुताबिक प्रणब मुखर्जी जब राष्ट्रपति थे, तो एक दिन राहुल गांधी ने उनसे मिलने का वक्त मांगा। राहुल गांधी के दफ्तर को प्रणब के दफ्तर की तरफ से शाम का वक्त दिया गया, लेकिन राहुल गांधी सुबह ही प्रणब मुखर्जी से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंच गए। इस बारे में जब शर्मिष्ठा मुखर्जी ने पिता से बात की, तो प्रणब मुखर्जी ने हैरत जताते हुए उनसे कहा कि जब राहुल गांधी के दफ्तर को ही सुबह और शाम में अंतर का नहीं पता, तो वो पीएमओ यानी प्रधानमंत्री का दफ्तर भला कैसे चलाएंगे? यानी राहुल गांधी और उनके दफ्तर की इस चूक को प्रणब मुखर्जी ने बड़ा माना था।

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब में बताया है कि राहुल गांधी ने जब साल 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के एक अध्यादेश को सार्वजनिक तौर पर फाड़ा, तो प्रणब मुखर्जी स्तब्ध रह गए थे। शर्मिष्ठा का दावा है कि उनके पिता ने कहा कि राहुल को खुद के गांधी-नेहरू खानदान से होने का घमंड है। शर्मिष्ठा ने किताब में दावा किया है कि राहुल गांधी की तरफ से सार्वजनिक तौर पर अध्यादेश फाड़ना ही 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए आखिरी कील साबित हुआ था।