नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने छात्राओं और महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए खुद तो कोई फैसला नहीं दिया लेकिन केंद्र को अहम निर्देश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह सभी हितधारकों और राज्य सरकारों के साथ बातचीत करके यह तय करे कि क्या इस संबंध में एक मॉडल नीति बनाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह एक नीतिगत निर्णय है जिसमें केंद्र और राज्य शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका के साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समक्ष जाने के लिए कहा है।
Supreme Court disposes of a PIL seeking menstrual leave for woman employees and asks the Centre to hold talks with all stakeholders and State governments to decide if a model policy can be framed in this regard.
Supreme Court observes that menstrual leaves may encourage women… pic.twitter.com/TN97HPhs6f
— ANI (@ANI) July 8, 2024
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने साफ यह नीति से जुड़ा मुद्दा है और इस पर न्यायालय को विचार नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि मासिक धर्म की छुट्टियाँ महिलाओं को कार्यबल में बड़ी भागीदारी के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं, लेकिन ऐसी छुट्टियाँ अनिवार्य करने से महिलाओं को कार्यबल से दूर किया जा सकता है, हम ऐसा नहीं चाहते। इसमें कहा गया है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए हम जो भी करने की कोशिश करते हैं, वह उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है।
VIDEO | “There are two issues in this petition – first, for college students, two or three days menstrual leaves in a month; and second issue in this petition was for employees – two or three menstrual leaves for employees as per requirement. The honourable Supreme Court of India… pic.twitter.com/4bPs7QqHgR
— Press Trust of India (@PTI_News) July 8, 2024
इस संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए याचिकाकर्ता और वकील शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने बताया कि इस याचिका में दो मुद्दे हैं, पहला छात्राओं के लिए महीने में दो या तीन दिन मासिक धर्म की छुट्टी और इस याचिका में दूसरा मुद्दा महिला कर्मचारियों आवश्यकता अनुसार महीने में दो या तीन दिन के लिए मासिक धर्म अवकाश। उन्होंने बताया कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया है और कहा है कि वे एक नीतिगत निर्णय लेकर आएं और राज्यों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता दें।