
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 4 :1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया। सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ समेत जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एम. एम. सुंदरेश ने धारा 6A की वैधता का पक्ष लिया जबकि जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने इससे असहमति जताई। सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि प्रावधान 6 ए के उद्देश्य को बांग्लादेश युद्ध के बाद की पृष्ठभूमि में समझा जाना चाहिए। विदेशियों का पता लगाना एक विस्तृत प्रक्रिया है, विधायिका ने राज्य को बुनियादी ढांचे के निर्माण का अधिकार दिया है। यह सच है कि असम समझौते और छात्र आंदोलन के लिए चिंता का एक कारण अधिकारों का कमजोर होना था।
Supreme Court’s five-judge Constitution bench upholds the constitutional validity of Section 6A of the Citizenship Act inserted by way of an amendment in 1985 in furtherance of the Assam Accord. pic.twitter.com/I2waFAKhbl
— ANI (@ANI) October 17, 2024
वहीं, जस्टिस सूर्यकांत ने खुद अपने, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एमएम सुंदरेश के फैसले को पढ़ते हुए कहा कि हमने भी धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। हमने न्यायिक समीक्षा पर आपत्तियों को खारिज कर दिया है। हम किसी को अपने पड़ोसी चुनने की इजाजत नहीं दे सकते और यह उनके भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है। सिद्धांत यह है ‘जियो और जीने दो।‘ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि धारा 6ए पहली बार प्रवासियों को भी नागरिकता प्रदान करती है और यह पुनः प्रवासी वर्ग से अलग है। हमने इस मुद्दे पर कानून बनाने की संसद की शक्ति को भी बरकरार रखा है। धारा 6ए नागरिकता अधिनियम की धारा 9 का खंडन नहीं करती है। एक बार अप्रवासी भारत के नागरिक बन गए तो वे भारत के संविधान द्वारा शासित हो गए। यह उन्हें हमारे देश के कानूनों का पालन करने से मुक्त नहीं करता है।
बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 14 पर, अदालतें समावेशी कानून के तहत मामूली रूप से सहिष्णु हैं, बशर्ते कि समझदार अंतर के आधार पर एक व्यापक स्पष्ट वर्गीकरण हो। वहीं अनुच्छेद 29 पर हमने माना है कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में विफल रहे हैं कि असमिया संस्कृति, भाषा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। वास्तव में यह 1971 की अंतिम तिथि के बाद भारत के क्षेत्र में प्रवेश करने वाले अवैध आप्रवासियों का पता लगाने और निर्वासन का आदेश देता है। किसी अन्य समूह की उपस्थिति के कारण याचिकाकर्ता अपनी संस्कृति आदि पर संवैधानिक रूप से वैध प्रभाव नहीं दिखा पाए हैं। हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि असमिया के वोट देने के अधिकार पर कोई असर पड़ा है। याचिकाकर्ताओं ने अपने वैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का कोई दावा नहीं किया है। वहीं, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला अल्पसंख्यक फैसले में असहमति जताते हुए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को असंवैधानिक ठहराया। उन्होंने कहा कि धारा 6ए राजनीतिक समझौते को विधायी मान्यता देने के लिए बनाई गई थी। कानून का एक हिस्सा अधिनियमन के दौरान वैध हो सकता है लेकिन समय बीतने के साथ यह अस्थायी रूप से अनुचित हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
असम समझौते के तहत 1985 में एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। इसके अनुसार बांग्लादेश से 1 जनवरी 1966 से लेकर 25 मार्च 1971 से पहले जो लोग असम आए हैं उनको भारतीय नागरिकता दी जाएगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में ये दलील दी गई थी बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थियों के कारण राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है और मूल निवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है।