
नई दिल्ली। आजादी की लड़ाई से लेकर राम मंदिर निर्माण में अपना सर्वत्र न्योछावर कर देने वाले शंकराचार्य स्वरुपानंद हमारे बीच नहीं रहे। 99 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उन्होंने मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर के झोतेश्वर मंदिर में अंतिम सांस ली। वह द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य थे। अभी हाल ही में उन्होंने विगत 3 सितंबर को अपना 99वां जन्मदिन मनाया था। वे विगत कई दिनों से बीमार थे। काफी दिनों तक उपचाराधीन रहने के दौरान आज उनका निधन हो गया। उनके असमय निधन से उनके प्रशंसक व्यथित हैं। बता दें कि उनके निधन की खबर लगते ही आसपास से उनके श्रद्धालु आश्रम पहुंचना शुरू कर चुके हैं। शंकराचार्य स्वरुपानंद हिंदुओं के बड़े गुरु माने जाते हैं। आजादी की लड़ाई से लेकर राम मंदिर को लेकर हुई कानूनी लड़ाई तक में स्वरुपानंद ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया था।
Swami Swaroopanand Saraswati passes away at age of 99
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— ANI Digital (@ani_digital) September 11, 2022
बता दें कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था। हालांकि, उनके माता-पिता ने उनका नाम पौथीराम उपाध्याय रखा था। लेकिन, उन्होेंने अपनी आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत करने के लिए महज 8 वर्ष की आयु में अपने परिवार छोड़ दिया था। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के पड़ाव के दौरान वे उत्तर प्रदेश के काशी पहुंचे थे। जहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज के अधीन रहकर वैदोंं की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने आध्यात्मिक जीवन के दौरान 19 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी के खिलाफ बगावत का बिगुल भी फूंका था। उन्होंने राम मंदिर से लेकर आजादी की लड़ाई तक अपना सर्वत्र न्योछावर करने में कोई गुरेज नहीं किया।
उधर, उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन को नई उड़ान देने के लिए 1950 में दांडी संन्यास बनाया था। जिसके बाद उन्हें 1981 में सक्राचार्य की उपाधि मिली थी। साल 1950 में ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। वहीं, उनके निधन से पूरा संत समाज व्यथित है।