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J&K: नौकरी से बर्खास्त होने पर कश्मीरी कट्टरपंथी गिलानी के पोते ने खाई पलटी, कोर्ट में कहा- दादा से वास्ता नहीं

J&K: अब अनीस ने कोर्ट में एक अर्जी देकर अपनी नौकरी बहाल करने की अपील की है और इस अपील की खास बात ये है कि उसने अपने कट्टरपंथी दादा से कोई संबंध होने से ही साफ इनकार कर दिया है। अनीस ने अपनी अपील में कहा है कि उसके दादा भारत का विरोध करते थे और इसी वजह से सरकार ने उसे नौकरी से निकाल दिया।

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले हुर्रियत के गिलानी गुट ने काफी हिंसा करवाई और पाकिस्तान परस्ती में कमी नहीं की। इस गुट के चीफ रहे सैयद अली शाह गिलानी लगातार भारत के खिलाफ बयानबाजी करते रहते थे। वहीं, उनके परिवार के लोग मजे से सरकारी नौकरी कर रहे थे। जब अनुच्छेद 370 को रद्द कर मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का शासन अपने हाथ लिया, तो गिलानी जैसे लोगों के रिश्तेदारों पर गाज गिरनी शुरू हुई। भारत विरोधी गतिविधियों में जिनकी सरकारी नौकरियां छीनी गईं, उनमें गिलानी का पौत्र अनीस-उल-इस्लाम भी था। वो शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में काम करता था। अनीस को आतंकी गतिविधियों को मदद देने के आरोप में नौकरी से बर्खास्त किया गया था।


अब अनीस ने कोर्ट में एक अर्जी देकर अपनी नौकरी बहाल करने की अपील की है और इस अपील की खास बात ये है कि उसने अपने कट्टरपंथी दादा से कोई संबंध होने से ही साफ इनकार कर दिया है। अनीस ने अपनी अपील में कहा है कि उसके दादा भारत का विरोध करते थे और इसी वजह से सरकार ने उसे नौकरी से निकाल दिया। जबकि, वो कभी भी देशविरोधी कामकाज में शामिल नहीं रहा था। बता दें कि अनीस उस इस्लाम, अल्ताफ अहमद शाह उर्फ अल्ताफ फंटूश का बेटा है और उसे संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत विशेष प्रावधान का इस्तेमाल कर नौकरी से निकाल दिया गया था। इस्लाम को 2016 में शेर-ए-कश्मीर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में शोध अधिकारी नियुक्त किया गया था। बता दें कि गिलानी का लंबी बीमारी के बाद पिछले साल निधन हो चुका है।

अब नौकरी जाने के बाद गिलानी के परिजनों में हड़कंप है। सरकार ने इसके बाद कश्मीर के तमाम नेताओं की सुरक्षा में लगी एसएसजी को भी भंग कर दिया और ऐसे नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली। जिन नेताओं की सुरक्षा वापस ली गई है, उनमें पूर्व सीएम फारुक अब्दुल्ला, उनके बेटे और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं। गुलाम नबी को छोड़कर बाकी नेताओं ने इस कदम का जमकर विरोध किया था, लेकिन मोदी सरकार अपने इरादे में टस से मस नहीं हुई।