नई दिल्ली। जब आदमी के अंदर देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा हो, तो वह देश पर संकट के समय बलिदान के लिए खुद को आगे रखता है। वह फिर नफा-नुकसान नहीं सोचता है, जब भी देश ने याद किया, तैयार होकर चल लिए। कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व सैनिक तेज सिंह का था। 1971 के युद्ध में जब देश को दो मिनी प्लेन की जरूरत पड़ी थी, तो सैनिक पायलट न होते हुए भी तेज सिंह सहर्ष तैयार होकर युद्ध के मैदान में प्लेन लेकर चले गए थे। उनके इस जज्बे की फिर पूरे देश में सराहना हुई थी। वर्तमान में तेज सिंह अपने बेटे मानवेंद्र वर्मा के साथ इंदौर के तिलक नगर में रहते थे, लेकिन गुरुवार को उनका निधन हो गया। 1971 के पाकिस्तान युद्ध के बाद जब तेज सिंह लौटे थे, तो लोगों ने अनाज से तौलकर उनका स्वागत किया था।
18 दिन तक रहकर प्लेन का मेंटनेंस किया था
1971 के पाकिस्तान युद्ध में जब सेना को दो मिनी प्लेन की जरूरत पड़ी थी, तो सेना ने इंदौर के फ्लाइंग क्लब से संपर्क स्थापित किया था। लेकिन उस वक्त वहां के पायलट भरत टोंग्या बीमार थे, तब इंजीनियर पद पर कार्यरत तेजसिंह ने युद्ध मैदान में जाने की ठानी थी। तेजसिंह के पास चूंकि कमर्शियल पायलट का लाइसेंस उपलब्ध था, ऐसे में सेना ने भी उन्हें तत्काल मौका दे दिया था। फिर क्या था, बिना जान की परवाह किए तेज सिंह भी जैसलमेर पहुंच गए थे, जहां उन्होंने बंकर में करीब 18 दिन रहकर प्लेन का मेंटनेंस किया था।
‘मेरी ख्वाहिश है यदि मौत हो तो बॉर्डर पर हो’
तेज सिंह के बेटे मानवेंद्र वर्मा ने बताया कि मेरे पिता लंबे समय से बीमार थे। नौकरी से रिटायर होने के बाद भी उनकी यही तमन्ना रहती थी कि उनका दम सैनिकों के साथ रहकर सरहद पर ही निकले। गुरुवार को मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार तिलकनगर मुक्तिधाम में संपन्न हुआ। इस मौके पर सभी समाजसेवी और गणमान्य लोग उपस्थित हुए थे।
युद्ध से बम के टुकड़े साथ लाए थे
18 दिन सेना के साथ बंकरों में गुजारने के बाद तेजसिंह जब लौटे थे, तो वे अपने साथ खुद के बंकरों पर पाकिस्तान द्वारा गिराए गए बमों के टुकड़े साथ लाए थे। उनके इस बहादुरी पर वापस लौटने पर रहवासियों ने उनका स्वागत गेहूं और अन्य अनाजों में तौलकर किया था।