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कंगना रनौत को थप्पड़ मारने वाली कांस्टेबल को सपोर्ट करने वाली सोच अराजकतावादी

कंगना रनौत को थप्पड़ मारने वाली महिला कांस्टेबल के सपोर्ट में जो बोला जा रहा है और कहा जा रहा है वह सोच देश के लिए घातक है। अतिवाद और आतंकवाद में जरा सा ही फर्क होता है। यह अराजकतावादी सोच है और देश के लिए घातक है

मंडी से नवनिर्वाचित सांसद फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत को चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर थप्पड़ मारा जाता है। थप्पड़ मारने वाली ऑन ड्यूटी महिला कांस्टेबल कुलविंदर कौर तुरंत बाद वहां मौजूद मीडिया कर्मियों के सामने आती हैं और बेबाकी से बोलती हैं कि चूंकि कंगना ने किसान आंदोलन को लेकर बयान दिया था। आंदोलन में उसकी मां भी थी इसलिए उसने थप्पड़ मारा। घटना का वीडियो वायरल होता है, कुछ ही घंटों बाद आंदोलनजीवी सक्रिय हो जाते हैं। उस महिला कांस्टेबल को ईनाम देने की घोषणाएं होने लगती हैं।

यह बात सोचने वाली है कि कंगना रनौत को तमाचा मारने का विचार अचानक तो कुलविंदर को आया नहीं होगा। कंगना को जिस दिन तमाचा मारा गया वह दिन था 6 जून। इसी दिन पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाई जा रही थी। इस घटना के तत्काल बाद महिला कांस्टेबल कुलविंदर कौर के सपोर्ट में कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर उतर आए। कई किसान संगठनों ने भी महिला कांस्टेबल को समर्थन देने की बात कही है।

महिला कांस्टेबल को सपोर्ट कर रहे लोगों को पता होना चाहिए कि ऐसे ही कुछ सिरफिरों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को गोलियों से भून दिया था। जबकि वह उनके अंगरक्षक थे। यह एक सोच है जो बहुत ही खतरनाक है। कुलविंदर कौर एक आम महिला नहीं हैं वह एयरपोर्ट जैसी संवेदनशील जगह पर सुरक्षा में तैनात थीं। हो सकता है बात थप्पड़ से आगे भी बढ़ जाती। कल को कोई और सिरफिरा इससे भी आगे का कदम उठा सकता है।

इस खबर के मीडिया की सुर्खियां बनने के तुरंत बाद भारत से भागा हुआ ईनामी खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नू महिला कांस्टेबल को 10 हजार डॉलर ईनाम दिए जाने की घोषणा कर देता है। फिल्म इंडस्ट्री से कंपोजर और सिंगर विशाल ददलानी महिला कांस्टेबल को नौकरी देने की पेशकश कर डालते हैं। 6 जून को कंगना के साथ ऐसी घटना होती है। 7 जून को कई किसान संगठन और आतंकी पन्नु वीडियो जारी कर उसे ईनाम देने की घोषणा करता है। 9 जून को ‘कथित किसानों’ द्वारा ‘इंसाफ मार्च’ निकाले जाने की घोषणा की जाती है।

कंगना को थप्पड़ मारने से लेकर महिला कांस्टेबल कुलविंदर कौर के सपोर्ट में आतंकी पन्नु के आने और ‘कथित किसानों’ द्वारा मार्च निकाले जाने की घोषणा करने तक की पूरी क्रोनोलॉजी को समझने की जरूरत है। 6 जून वह दिन था जिस दिन पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाई जा रही थी। 9 जून को जब देश में नई सरकार का गठन होने जा रहा है तो उसी दिन महिला कांस्टेबल के समर्थन में कथित ‘इंसाफ मार्च’ निकालने की घोषणाएं की जा रही हैं वह भी वर्दी को दागदार करने वाली उस महिला कांस्टेबल के लिए, जिस पर लोगों की सुरक्षा का दायित्व था और वह एयरपोर्ट जैसी संवेदनशील जगह पर तैनात थीं। उसने न सिर्फ कानून तोड़ा बल्कि जनता द्वारा चुनी महिला सांसद को तमाचा भी मारा। जिस दिन देश में तीसरी बार नई सरकार बन रही है उसी दिन मार्च निकालने का क्या अर्थ है ? यह साजिश है, भारत की छवि को धूमिल करने की। यह साजिश है देश से बाहर बैठे खालिस्तानियों और अराजकतावादियों की।

आपको याद होगा 2021 में दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच हुआ था। लोकतंत्र की गरिमा को तार-तार कर दिया गया था। दिल्ली में जो हुआ था, क्या वह वास्तव में किसान आंदोलन ही था। दिल्ली बंधक बनी रही और सड़कों पर फरसे तलवारें लिए हुए कथित किसान या यूं कहें उग्रवादियों ने दिल्ली को बंधक बना लिया। उन्हीं की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों को ट्रैक्टर के पहियों के नीचे कुचलने की कोशिशें की गईं। उन पर लाठी-डंडों से हमले कर लहुलुहान कर दिया गया। लाल किले पर सिख प्रतीक का झंडा फहरा दिया गया। तिरंगे का अपमान किया गया। गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने आए बच्चे लाल किले के एक बैरक में डरे सहमे बैठे रहे। देर शाम में उन्हें पुलिस वहां से निकाल सकी। किसान आंदोलन के नाम पर लाल किले में दंगाइयों ने जिस तरह का उपद्रव किया उससे पूरा देश शर्मिंदा हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हुई। अराजकतावादी सोच वाले लोग आखिर चाहते क्या हैं। ऐसी सोच को कंट्रोल किए जाने की सख्त जरूरत है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।