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Kargil Vijay Diwas: करगिल विजय दिवस आज, जानिए 24 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग का इतिहास और कौन था इसका विलेन

भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल की जंग हुई थी, ये तो सभी जानते हैं, लेकिन इसकी वजह शायद आज की नई पीढ़ी को पता नहीं है। नई पीढ़ी में से कम ही ये जानते हैं कि करगिल युद्ध का विलेन कौन था। इतिहास के पन्नों को पलटते हुए आपको बताते हैं कि करगिल की जंग आखिर हुई क्यों थी और उसका नतीजा क्या रहा।

नई दिल्ली। आज करगिल विजय दिवस है। 24 साल पहले 26 जुलाई 1999 को ही भारतीय सेना के जांबाजों ने जम्मू-कश्मीर के करगिल में पहाड़ी चोटियों पर कब्जा करने वाली पाकिस्तानी सेना को शिकस्त देकर भारत को उसकी जमीन वापस दिलाई थी। भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल की जंग हुई थी, ये तो सभी जानते हैं, लेकिन इसकी वजह शायद आज की नई पीढ़ी को पता नहीं है। नई पीढ़ी में से कम ही ये जानते हैं कि करगिल युद्ध का विलेन कौन था। तो चलिए, इतिहास के पन्नों को पलटते हुए आपको बताते हैं कि करगिल की जंग आखिर हुई क्यों थी और उसका नतीजा कैसा निकला था।

Pervez Musharraf Death
करगिल जंग के विलेन पाकिस्तानी सेना के जनरल रहे परवेज मुशर्रफ की फाइल फोटो।

 

करगिल जंग का खाका खीचने वाले यानी विलेन पाकिस्तान के तब सैन्य शासक रहे जनरल परवेज मुशर्रफ थे। तब पाकिस्तान के पीएम पद पर नवाज शरीफ बैठे थे। नवाज शरीफ ने करगिल जंग के बाद मुशर्रफ पर आरोप लगाया कि सेना प्रमुख ने बगैर उनकी जानकारी के करगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी सेना के जवानों से कब्जा करा दिया। पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के जवान करगिल और द्रास की चोटियों पर कब्जा जमाकर बैठ गए थे, जब भारी बर्फबारी की वजह से हर साल की तरह उस साल भी भारतीय सेना इन चोटियों से नीचे उतर आई थी। मई 1999 तक पाकिस्तानी सेना ने करगिल की चोटियों पर बंकर वगैरा भी बना लिए और तमाम हथियार लेकर उनमें बैठ गए। इसकी जानकारी मई 1999 में कुछ चरवाहों ने भारतीय सेना को दी।

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भारतीय सेना को पहले लगा कि शायद आतंकियों ने घुसपैठ की होगी। जानकारी जुटाने के लिए लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक टुकड़ी भेजी गई। वहां उन्होंने पाया कि आतंकी नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवाब करगिल की चोटियों पर कब्जा जमाए बैठे थे। लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उनकी टुकड़ी ने सबसे पहले पाकिस्तानी सेना का मुकाबला किया। उनके साथी शहीद हो गए और सौरभ कालिया को पकड़कर दुश्मन देश के जवानों ने टॉर्चर करते हुए शहीद कर दिया। लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया का शव जब भारतीय सेना को वापस किया गया, तो वो क्षत-विक्षत था। उनकी आंख तक निकाल ली गई थी।

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इस घटना के बाद भारतीय सेना को तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को करगिल से हटाने का टास्क दिया। सेना के दस्ते दर दस्ते द्रास और करगिल पहुंचाए गए। विषम हालात में खड़ी चढ़ाई चढ़कर भारतीय सेना के जांबाज जवानों ने घुसपैठ कर बैठी पाकिस्तान सेना पर हमला किया। कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय, सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव और रायफलमैन संजय कुमार जैसे बहादुरों की वजह से भारत ने एक के बाद एक करगिल की चोटियों को दुश्मन से खाली कराना शुरू किया। 60 दिन तक भारत और पाकिस्तान के बीच करगिल की जंग जारी रही। इसमें दुश्मन के 700 जवान ढेर किए गए। भारत के भी करीब 500 जवान शहीद हुए। इसके बाद 26 जुलाई 1999 को भारत ने जीत का एलान किया। तभी से इसे करगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है।