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भारत में आर्मी डे क्यों मनाया जाता है, जानें इस दिन दिल्ली में कहां-कहां जा सकते हैं घूमने

हर साल की तरह इस साल भी 15 जनवरी को आर्मी डे मनाया जाएगा। ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स 2017 के अनुसार, भारतीय सेना को दुनिया की चौथी सबसे मजबूत सेना में गिना जाता है।

नई दिल्ली। हर साल की तरह इस साल भी 15 जनवरी को आर्मी डे मनाया जाएगा। ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स 2017 के अनुसार, भारतीय सेना को दुनिया की चौथी सबसे मजबूत सेना में गिना जाता है। ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स अनुसार, अमेरिका, रूस और चीन के पास भारत से बेहतर सेना है। इसलिए भारतीय सेना को चौथे नंबर पर गिना जाता है।Army Dayभारतीय सेना का आरंभ ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं से हुई थी, जिसे बाद इसे ‘ब्रिटिश इंडियन आर्मी’ के रूप में जाना जाने लगा। वहीं आजादी के बाद इसे भारतीय सेना के रूप में जाना जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय सेना की स्थापना लगभग 123 साल पहले 1 अप्रैल 1895 को अंग्रेजों द्वारा की गई थी। भारतीय सेना की स्थापना 1 अप्रैल को हुई थी, लेकिन भारत में सेना दिवस 15 जनवरी को मनाया जाता है।
Army Day

आजादी के समय भारतीय सेना की कमान ब्रिटिश जनरल सर फ्रांसिस बुचर के हाथों में थी। इसलिए भारतीयों के हाथों में देश का पूर्ण नियंत्रण सौंपने का यह सही समय था। इसलिए फील्ड मार्शल केएम करियप्पा 15 जनवरी 1949 को आजाद भारत के पहले भारतीय सेना प्रमुख बनाया गया। चूंकि यह अवसर भारतीय सेना के लिए बहुत अद्भुत था, इसलिए भारत में हर साल इस भव्य दिवस को सेना दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। तब से यह परंपरा जारी है। आर्डी डे सभी सेना मुख्यालय और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कई अन्य सैन्य शो सहित सेना की परेड आयोजित करके मनाया जाता है।

डेल्टा 105Delta 105

एकेडमी ऑफ पेस्ट्री आर्ट्स के सह-संस्थापक मेजर दिनेश शर्मा ने आम लोगों को सैनिकों के जीवन का अनुभव देने के लिये गुरुग्राम में आर्मी थीम पार्क ‘डेल्टा105’ की शुरुआत की है। डेल्टा105 ने एक बयान में बताया कि यह पार्क 26 एकड़ में मानेसर के पास बनाया गया है। इसे सैन्य क्षेत्र की तरह विकसित किया गया है। इसमें आम जनता को सैन्य गतिविधियों से जुड़ी कई तरह की जानकारी दी जायेगी। एक सैनिक लड़ाई के दौरान पूरे साजो सामान के साथ कैसे दौड़ता है, फायरिंग रेंज क्या होती है। ग्रेनेड थ्रोइंग रेंज, नक्शा समझने का तरीका आदि सैन्य गतिविधियों से अवगत कराया जाता है। इसके अलावा लोगों को राष्ट्रध्वज की तह लगाने का सही तरीका भी बताया जाता है।Army Dayपार्क में बनाये गये भोजनालय में भारतीय सेना के विभिन्न बटालियन का भोजन भी लोगों के लिये उपलब्ध होगा। मेजर शर्मा ने कहा, ‘‘भारतीय सेना के जीवन का व्यक्तिगत अनुभव लेने के इच्छुकलोगों के लिए डेल्टा 105 को शुरू किया गया है। इसमें मनोरंजन के साथ शिक्षाप्रद गतिविधियां भी उपलब्ध हैं। हमारे मेहमान यहां तैनात पूर्व सैन्यकर्मियों से बात कर सकते हैं। हम इस पार्क के जरिये लोगों को वे अनुभव देना चाहते हैं, जो हमें सेना में काम करते हुए मिले।’’

इंडियन एयरफोर्स म्यूजियम

इंडियन एयरफोर्स म्यूजियम दिल्ली के पालम एयर फोर्स स्टेशन में स्थित है। गोवा के नेवल एविएशन म्यूजियम बनने तक यह अपनी तरह का पहला संग्रहालय था। संग्रहालय के प्रवेश द्वार में एक इनडोर डिस्प्ले गैलरी है।Indian Air Force Museum

प्रथम विश्व युद्ध तथा करगिल वार के दौरान भारतीय वायुसेना के योगदान की एक झलक देख सकते हैं जिसमें भारतीय वायु सेना की ऐतिहासिक तस्वीरों, यादगार वस्तुओं, वर्दी और व्यक्तिगत हथियारों को शामिल किया गया है। आउटडोर गैलेरी में वार ट्रोफी और दुश्मन से जीते हुए व्हीकल्स प्रदर्शन के लिए रखे गए हैं।

इंडिया गेट

इंडिया गेट को पहले ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल के नाम से जाना जाता था। 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे ऐंग्लो-अफगान युद्ध में बड़ी संख्या में ब्रिटिश साम्राज्य की ओर से भारतीय सैनिक लड़े थे और कुर्बानी दी थी। करीब 82,000 भारतीय सैनिकों ने इन युद्धों में सर्वोच्च बलिदान दिया था। उन सैनिकों को श्रद्धांजलि देने और उनकी कुर्बानी की याद में इस स्मारक को बनवाया गया था। इंडिया गेट के पास ही दिल्ली की सबसे मशहूर जगहों में से एक है कनॉट प्लेस। इसका नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के एक सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर रखा गया है। उसी ड्यूक ऑफ कनॉट ने 10 फरवरी, 1921 को इंडिया गेट की बुनियाद रखी थी। यह स्मारक दस साल बाद बनकर तैयार हुआ। 12 फरवरी, 1931 को उस समय भारत के वायसराय रहे लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया था। हर साल गणतंत्र दिवस परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होती है और इंडिया गेट होकर गुजरती है।Army Day

20वीं सदी में महान वास्तुकार हुआ करते थे सर एडविन लुटियंस। उन्होंने कई बिल्डिंग, युद्ध स्मारक और हवेली का डिजाइन किया था। उनके नाम पर ही नई दिल्ली में एक इलाका लुटियंस दिल्ली के नाम से जाना जाता है। लुटियंस ने ही इंडिया गेट का डिजाइन किया था। उसने लंदन में एक सेनोटैफ (सैनिकों की कब्र) समेत पूरे यूरोप में 66 युद्ध स्मारक के डिजाइन तैयार किए थे। इंडिया गेट का डिजाइन फ्रांस के पैरिस में स्थित आर्क डे ट्रायम्फ से प्रेरित है। इंडिया गेट की ऊंचाई 42 मीटर और चौड़ाई 9.1 मीटर है। इसको बनाने में लाल और पीले सैंडस्टोन एवं ग्रैनाइट का इस्तेमाल हुआ है जिसे भरतपुर से लाया गया था। इंडिया गेट की दीवारों पर सभी शहीद सैनिकों के नाम लिखे हुए हैं।India Gate Road

अमर जवान ज्योति का निर्माण दिसंबर, 1971 में हुआ था। साल 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। इंडिया गेट स्मारक के नीचे स्थित अमर जवान ज्योति भारत के अज्ञात सैनिकों की कब्र का प्रतीक है। दरअसल इसका निर्माण भारत-पाक युद्ध 1971 में शहीद हुए सैनिकों की याद में किया गया था। इस स्मारक पर संगमरमर का आसन बना हुआ है। उस पर स्वर्ण अक्षरों में ‘अमर जवान’ लिखा हुआ है और स्मारक के ऊपर L1A1 आत्म-लोडिंग राइफल भी लगी हुई है, जिसके बैरल पर किसी अज्ञात सैनिक का हेलमेट लटका हुआ है। इस स्मारक पर हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो अमर जवान की प्रतीक है। स्मारक के चारों कोने पर लौ है लेकिन साल भर एक ही लौ (ज्योति) जलती रहती है। 26 जनवरी और 15 अगस्त के मौकों पर चारों ज्योति जलती है। साल 2006 तक इसको जलने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल किया जाता था लेकिन अब सीएनजी का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी सुरक्षा भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना के जवान दिन-रात करते हैं।26 जनवरी, 1972 को अमर जवान ज्योति के उद्घाटन के समय इंदिरा गांधी ने सैनिकों को श्रद्धांजलि दी थी।

नेशनल वॉर मेमोरियल

60 साल बाद आखिरकार पूरे देश को पहला नेशनल वॉर मेमोरियल मिल गया जिसमें शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन किया। यहां स्मारकों के साथ संग्रहालय भी बनाया गया है। दोनों के बीच एक सब-वे भी रखा है। इसके अलावा नेशनल वॉर मेमोरियल में दीवारों पर 25,942 शहीदों के नाम भी लिखे गए हैं। विजय चौक से इंडिया गेट और नेशनल वॉर मेमोरियल के दृश्य को देखा जा सकता है।

बताया जा रहा है कि शहीदों की याद में स्मारक और संग्रहालय बनाने पर विचार सबसे पहले वर्ष 1968 में किया गया था, जो कि अब जाकर देश को मिला है। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार गठन के कुछ ही माह बाद 2015 में इसे अंतिम अनुमति दी गई थी। नेशनल वॉर मेमोरियल काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसलिए एक सुविधा फोन एप की भी रखी गई है। इस एप के जरिए शहीद का नाम टाइप करने पर उसका स्मारक कहां पर है, उसकी लोकेशन आपके फोन में पता चलेगी। ये सुविधा उन लोगों के लिए खास रहेगी, जिनके गांव या जिले के सैनिक इन युद्धों में शहीद हुए थे।

ऐसा है शहीदों का मेमोरियल
नेशनल वॉर मेमोरियल में चार चक्र बनाए गए हैं।
जल, थल और वायु सेना के शहीदों के नाम एकसाथ।
अमर चक्र पर 15.5 मीट ऊंचा स्मारक स्तंभ बना है, जिसमें अमर ज्योति जलेगी।
वीरता चक्र में छह बड़े युद्धों के बारे में जानकारी दी है।
त्याग चक्र में 2 मीटर लंबी दीवार पर 25,942 शहीदों के नाम।
690 पेड़ों के साथ सुरक्षा चक्र भी दिखेगा।
हर शाम सैन्य बैंड के साथ शहीदों को सलामी दी जाती है।
इंडिया गेट की तरह मेमोरियल में भी होगी अमर ज्योति।
पर्यटकों के लिए प्रवेश निशुल्क है।
हर सप्ताह रविवार को चेंज ऑफ गार्ड सेरेमनी देखने का मौका भी मिलता है।