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Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2022: कुर्मी परिवार से ताल्लुक रखने वाले वीर शिवा जी, जानिए कैसे बने छत्रपति और कैसे किया मुगलों की विशाल सेना से सामना

Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2022: हिंदवी स्वराज के समर्थक शिवाजी की जयंती को एक उत्सव की तरह मनाते हैं। शिवाजी ने अपने पराक्रम से स्वराज का बिगुल बजाया और “दिल्लीश्वरो, जगदीश्वरो वा” की मुगल धारणा को नष्ट किया।

नई दिल्ली। भारत को सुरक्षित, समृद्ध और संपन्न बनाने में समय-समय पर कई महापुरूषों और वीर सपूतों में जन्म लिया, इन्हीं महापुरुषों में एक सम्माननीय नाम छत्रपति शिवा जी महाराज का भी है। 19 फरवरी 1630 को ‘शिवनेरी दुर्ग’ में जन्में शिवाजी महाराज की इस साल देश में उनकी 392वीं जयंती मनाई जा रही है, हालांकि उनके जन्म के विषय में स्पष्टता नहीं है, क्योंकि कुछ लोग उनका जन्म 1627 में बताते हैं। शिवाजी के पिता शाहजी भोसले एक शक्तिशाली सामंत थे। उनकी माता का नाम जीजाबाई था, जो कि काफी धार्मिक स्वभाव वाली स्त्री थीं। माता जीजाबाई की देखरेख में शिवाजी का पालन-पोषण धार्मिक ग्रंथों को सुनते-सुनते हुआ था, जिससे उनके अंदर अभूतपूर्व प्रतिभा जाग चुकी थी। बाहर से गंभीर और शांत दिखने वाले शिवाजी के अंदर बचपन में ही शासक वर्ग की क्रूर नीतियों के खिलाफ लड़ने की अग्नि धधकने लगी थी।

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शिवाजी महाराज भारत के एक महान योद्धा और कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने सन् 1674 में उन्होंने ही भारत के पश्चिमी भाग में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। उन्होंने राष्ट्रीय गौरव की पुनः स्थापित करने के लिए हिंदवी स्वराज की स्थापना की थी। हिंदवी स्वराज के समर्थक शिवाजी की जयंती को एक उत्सव की तरह मनाते हैं। शिवाजी ने अपने पराक्रम से स्वराज का बिगुल बजाया और “दिल्लीश्वरो, जगदीश्वरो वा”  की मुगल धारणा को नष्ट किया। वीर शिवाजी ने मात्र 28 वर्ष की आयु में कोंडाणा, पुरंदर, प्रतापगढ़, राजगढ़, चाकड़ जैसे 40 दुर्गों पर अपना परचम लहरा दिया था और स्वराज का भगवा ध्वज को किले के सर्वोच्च स्थान पर स्थापित किया था। शिवाजी ने अपनी चतुराई और कुशल युद्ध नीति से अपने भाइयों के हत्यारे, भारतीय संस्कृति के प्रतीक मंदिरों व इमारतों को नष्ट करने वाले औरंगजेब को नाकों चने चबवा दिए थे, साथ ही विशाल सेना वाले शासकों सिपहसलार आदिलशाही, कुतुबशाही, अफजल खां, शाइस्ता खां, मिर्जा राजा जयसिंह के जहन में भी आतंक पैदा कर दिया था।

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शिवा जी तत्कालीन कई भारतीय नरेशों पथ प्रदर्शक बने और राजस्थान के वीर दुर्गादास राठौड़, असम के राजा चक्रध्वज सिंह प्रमुख आदि का मार्गदर्शन किया। वीर शिवाजी अत्यंत दूरदर्शी भी थे, अपने इसी गुण के कारण उस समय व्यापार के बहाने आने वाले यूरोपीय व्यापारियों जैसे अंग्रेजों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसीयों, डचों को भारत के भविष्य के लिए खतरा समझकर देश के पश्चिमी तट के समुद्री मार्ग पर सिंधुदुर्ग, सुवर्णदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग जैसे सुदृढ़ दुर्ग बनवा दिए, साथ ही वहां नौसेना का पहरा भी लगा दिया। अपने इन सभी वीर पूर्ण कार्यों के कारण शिवा जी उस समय भारत के विभिन्न क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय हो गये। शिवाजी के कुर्मी परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद, उनके पराक्रम से प्रभावित होकर बीजापुर नरेश व अंग्रेजों ने वीर शिवाजी को स्वतंत्र रूप से शासक के रूप में मान्यता दी और हिंदू रीति रिवाज से भारत के विभिन्न स्थलों की मिट्टी व विभिन्न नदियों के जल से स्नान कराकर काशी के पंडित ‘विश्वेश्वर भट्ट’ उर्फ ‘गागाभट्ट’ ने शिवाजी का राज्याभिषेक कराया।

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शिवा जी ने 5 जून 1674 को “हिंदवी साम्राज्य” की स्थापना की, जिसे हम भारतीय ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को “हिंदू साम्राज्योत्सव” के रूप में मनाते हैं। शिवाजी के आग्रह पर ही काशी के पंडित गागाभट्ट ने “शिवार्कोंदय” नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें कुमारिल भट्ट के श्लोकबद्ध, श्लोकवार्तिक रूप में ही विषय प्रस्तुति की गई है। “शिवदिग्विजय” नामक मराठी साहित्य में पं. गागाभट्ट को महासमर्थ ब्राह्मण, तेजराशि, तपोराशि, अपरसूर्य, साक्षात वेदनारायण तथा महाविद्वान की उपाधियों से नवाजा गया है। वीर शिवाजी की मृत्यु मात्र 50 वर्ष की आयु में 1680 में हो गई थी।