नई दिल्ली। भारतीय मनो-नैतिक शिक्षा और संस्कृति को समर्पित संस्थान ‘प्रज्ञानम् इंडिका’ द्वारा ‘सिविल सेवा परीक्षा और हिंदी माध्यम’ विषयक राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन 22 नवंबर 2020 को किया गया। वेबिनार में देशभर से बड़ी संख्या में शिक्षकों, विद्यार्थियों, अभिभावकों और सिविल सेवा अभ्यर्थियों ने सहभागिता की।
कार्यक्रम के संयोजक एवं ‘प्रज्ञानम् इंडिका’ के संस्थापक निदेशक प्रो. निरंजन कुमार ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि देश में सुचारु रूप से व्यवस्था चलाने में संघ लोक सेवा आयोग का महत्त्वपूर्ण योगदान है। पर ‘मेरिट का प्रहरी’ आयोग पिछले कुछ समय से सवालों के घेरे में है जिसमें प्रश्नों के अनुवाद की भी समस्या शामिल है। इसके अलावा अभ्यर्थियों की आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक पृष्ठभूमि भी अकसर परीक्षा में पिछड़ने का कारण बनती है जिन पर समग्र रूप से ध्यान देने की जरूरत है।
वक्ताओं के पूर्व अपनी विशिष्ट उपस्थिति में एडवर्ड मेंढे ने परीक्षाओं में आने वाली समस्याओं मसलन अध्ययन सामग्री की कमी, विभिन्न स्तरों पर भाषा की एकरूपता की कमी आदि पर चर्चा करते हुए उन्हें दूर करने की बात की।
आईएएस गंगा सिंह ने अभ्यर्थियों द्वारा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के अभ्यर्थियों के पिछड़ने के पीछे प्रायः विभिन्न अभावों को कारण माना। इसके बावजूद उन्होंने अभ्यर्थियों को अपना आत्मविश्वास बनाए रखते हुए मेहनत करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जीवन में संतुलन की तरह परीक्षा में भी हमारा संतुलन उतना ही आवश्यक है।
आईएएस निशांत जैन ने सिविल सेवा परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं के चयनित अभ्यर्थियों की संख्या पांच प्रतिशत से भी कम होने पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं होती बल्कि वे अपेक्षाकृत सामाजिक रूप से अधिक प्रतिबद्ध होते हैं। सिविल सेवा परीक्षाओं में अकादमिक से जुड़े लोगों की निष्क्रियता और कोचिंग की अति सक्रियता के कारण भी विसंगतियाँ आई हैं जिसे दूर करने की जरूरत है।
आईएएस विवेक पाण्डेय ने सिविल सेवा परीक्षा में तमाम समस्याओं से परे अपनी मौलिकता पर जोर देने का आग्रह किया। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा को राष्ट्रीय चरित्र की परीक्षा बताते हुए अपने व्यक्तित्व में विकास पर जोर दिया। उन्होंने परीक्षा में अत्यंत संक्षिप्त और साररूप में उत्तर लेखन की बात भी कही।
आईएएस तथा अपनी बैच में यूपीएससी परीक्षा टॉपर यह डॉ. सुनील कुमार बर्णवाल ने कहा कि भाषा प्रारंभिक स्तर पर भले एक समस्या बने पर प्रतिभा को वह बहुत समय तक रोके नहीं रख सकती है। इसलिए अभ्यर्थियों को अन्य बातों पर ध्यान दिए बिना अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। भारतीय भाषाएँ हमारी संस्कृति से जुड़ी है, और सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए एक इको सिस्टम विकसित करने पर बल दिया। इस तरह के संवादों को उन्होंने आज के समय की आवश्यकता बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध शिक्षाविद् और ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी जी ने परीक्षाओं में भाषा की विसंगतियों को सम्बद्ध अभ्यर्थियों के साथ अन्याय बताया। उन्होंने दुनिया के अनेक देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि अपने स्वाभाविक विकास के लिए स्वभाषा अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने संवाद को एक सकारात्मक कदम बताते हुए आगे भी इसकी आवश्यकता रेखांकित की।