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Who Is Chandrabhan Paswan: कौन हैं चंद्रभान पासवान जिन्हें मिल्कीपुर विधानसभा सीट से भाजपा ने बनाया उम्मीदवार, सपा के प्रत्याशी पर कैसे पड़ सकते हैं भारी

Who Is Chandrabhan Paswan: चंद्रभान पासवान मिल्कीपुर की राजनीति में एक जाना-पहचाना नाम हैं। वह रुदौली से दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वर्तमान में उनकी पत्नी भी इसी पद पर हैं। चंद्रभान पेशे से वकील हैं और साड़ी के व्यापार से भी जुड़े हैं। वे बीते दो वर्षों से मिल्कीपुर में सक्रिय रहे हैं, जिससे उन्हें भाजपा का टिकट मिलने का फायदा हुआ।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर इस समय सियासी पारा चरम पर है। अयोध्या जिले की इस बहुचर्चित सीट पर आगामी 5 फरवरी को उपचुनाव होना है। मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच है। सपा ने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है। वहीं, भाजपा ने लंबे इंतजार के बाद चंद्रभान पासवान को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

कौन हैं चंद्रभान पासवान?

चंद्रभान पासवान मिल्कीपुर की राजनीति में एक जाना-पहचाना नाम हैं। वह रुदौली से दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वर्तमान में उनकी पत्नी भी इसी पद पर हैं। चंद्रभान पेशे से वकील हैं और साड़ी के व्यापार से भी जुड़े हैं। वे बीते दो वर्षों से मिल्कीपुर में सक्रिय रहे हैं, जिससे उन्हें भाजपा का टिकट मिलने का फायदा हुआ।

जातीय समीकरण बना चुनाव का केंद्र

मिल्कीपुर सीट पर जातीय समीकरण बेहद अहम है। यहां 3.58 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख दलित और 60 हजार यादव हैं। पासी समाज के 55 हजार मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। सपा के अजीत प्रसाद और भाजपा के चंद्रभान पासवान दोनों ही पासी समाज से आते हैं। भाजपा ने चंद्रभान पासवान को उम्मीदवार बनाकर सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को चुनौती दी है।

सपा और भाजपा के लिए साख का सवाल

2022 विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव में सपा ने मिल्कीपुर और अयोध्या में जीत दर्ज की थी। भाजपा इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही है। राम मंदिर के मुद्दे के बावजूद सपा की जीत ने भाजपा को झटका दिया था। ऐसे में चंद्रभान पासवान पर दांव लगाकर भाजपा ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मिल्कीपुर सीट पर यादव, पासी और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। सपा इन समुदायों के समर्थन से अपनी स्थिति मजबूत मान रही है। वहीं, भाजपा अपने कोर वोट बैंक के साथ-साथ पासी समाज में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है।

नए चेहरे पर दांव

भाजपा ने इस बार गोरख बाबा जैसे पुराने दावेदारों को दरकिनार कर चंद्रभान पासवान पर भरोसा जताया है। गोरख बाबा ने 2017 में सपा के अवधेश प्रसाद को हराया था, लेकिन इस बार भाजपा ने जातीय समीकरणों को प्राथमिकता दी।