आगरा। देश में एक और धार्मिक स्थल को लेकर विवाद पैदा होता दिख रहा है। आगरा के एक वकील अजय प्रताप सिंह ने दावा किया है कि फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के नीचे मंदिर है। अजय प्रताप सिंह ने इस बाबत कोर्ट में केस भी किया है। वकील अजय प्रताप सिंह का कहना है कि आगरा के एक सिविल कोर्ट ने उनके दावे का केस मंजूर भी कर लिया है। अजय प्रताप सिंह ने जो केस किया है, उसमें आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति बचाओ ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक शोध संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट भी वादी हैं। वहीं, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और दरगाह सलीम चिश्ती और जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति को प्रतिवादी बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि बादशाह अकबर को संतान नहीं हो रही थी। वो सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के यहां गए थे। तब शेख सलीम चिश्ती ने बेटा होने का आशीर्वाद दिया। जिसके बाद अकबर के घर जहांगीर का जन्म हुआ। जहांगीर का बचपन का नाम सलीम रखा गया था। शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को अकबर ने ही बनवाया था।
वकील अजय प्रताप सिंह का दावा है कि फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के नीचे माता कामाख्या का मंदिर है। उनका ये भी दावा है कि पड़ोस की मस्जिद का हिस्सा मंदिर था। अजय प्रताप सिंह ने इस दावे को गलत बताया कि फतेहपुर सीकरी को मुगल बादशाह अकबर ने बसाया। वकील का कहना है कि मुगल बादशाह बाबर की जीवनी बाबरनामा में भी इस स्थान का जिक्र विजयपुर सीकरी के नाम से है। वकील ने पुरातात्विक सबूतों के आधार पर कहा है कि विभाग के पूर्व अधिशासी पुरातत्वविद डीबी शर्मा ने यहां खोदाई की थी। जिसमें कई हिंदू और जैन मूर्तियां मिली थीं। जो 1000 ईस्वी की थीं। उनका कहना है कि ब्रिटिश अधिकारी ईबी हॉवेल ने विवादित जगह के खंबों और छत को हिंदू मंदिर का हिस्सा माना था।
अजय प्रताप सिंह का कहना है कि खानवा की जंग के दौरान सीकरी के राजा राव धामदेव थे। उन्होंने उस वक्त माता कामाख्या की प्रतिमा को सुरक्षित गाजीपुर भिजवा दिया था। वकील ने मीडिया से कहा कि कानून के मुताबिक एक बार जो मंदिर बन जाए, उसका चरित्र बदला नहीं जा सकता। इस मामले में जज मृत्युंजय श्रीवास्तव ने नोटिस जारी किया है। इससे पहले वकील अजय प्रताप सिंह ने कोर्ट में ये दावा करते हुए केस किया था कि आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान कृष्ण की मूर्ति दबाई गई थी।